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________________ प्रारणतरण लोक-हिंसानंदी सृषानंदी, स्तेयानंद अबभयं । ॥१०॥ रौद्रध्यानं च संपूर्ण, अधर्म दुःखदारुणं ॥ ९६ ॥ अन्वयार्थ (हिंसानंदी) जो हिंसामें भानंद माननेवाला हो (मृषानंदी ) जो मिथ्यावादमें व मिथ्या तत्वों में रंजायमान होनेवाला हो (स्तेयानंद) जो चोरीमें आनंद माननेवाला हो (अवमयं) जो अब्रह्म या कुशील षोषक हो (रौद्रध्यानं च संपूर्ण) ऐसे रौद्रध्यानसे पूर्ण हो वह (दुःखदारुण ) घोर दुःख देने वाला (अधर्म) अधर्म है। विशेषार्थ-चार प्रकारका रौद्रध्यान जिस धर्ममें भरा हो व जिसके पालनेसे चार प्रकारका रौद्रध्यान हो वह अधर्म है क्योंकि रौद्रध्यान नर्कगतिके बंधका कारण है। धर्म वह है जो उत्तम सुखमें धारण करे । अन्य शास्त्रों में चौथा रौद्रध्यान परिग्रहानंद है जब यहां अब्रह्मचर्यको कहा है कोई बाधा नहीं है। क्योंकि अब्रह्मके निमित्तसे ही धनादि स्त्री आदि पदार्थों का मुरुपतासे संग्रह किया जाता है। धर्म वही है जहां शांत भाव होसकें।जहां शुद्धात्मापर लक्ष्य रखते हुए पूजा पाठ जप तप आराधन होगा वहीं शांत भाव प्राप्त होगा। रौद्रध्यानमें शांत भाव नहीं होसक्ता। हिंसा करने, कराने व उसकी अनुमोदनामें आनन्द मानना हिंसानंद है। मिथ्या कहने, कहलाने व उसकी अनुमोदनामें आनंद मानना मृषानंद है। चोरी करने, कराने व उसकी अनुमोदनामें आनंद मानना अस्तेयानंद है। ब्रह्मचर्यके घात करने, कराने व अनुमोदनामें आनंद मानना व परिग्रह के संग्रह करने, कराने व अनुमोदनामें आनंद मानना परिग्रहानंद रौद्रध्यान है। जिस धर्मका उपदेश रौद्रध्यानकी पुष्टि करता हो वह कभी धर्म नहीं होसका है। जैसे शृङ्गार करनेमें, युद्धादि क्रिया दिखाने में, पशुबलि करनेमें, जल स्नान करने में, रागदेष वर्धक आकारोंको पूजनेमें, रात्रिको आहार करने में, कंदमूल खाने में, संसारासक्त परिग्रहधारी विषयलम्पटी महन्तको दान देने में, वेश्यानृत्य कराने में, जुआ खेलने में, वृक्षादि पूजने में, हाथी घोड़ा आदिके दान करने में, जो प्रेरक होकर इनको ही धर्म बतावे वह कुधर्म है। जहां विषयोंकी पुष्टि हो, राग बढ़ाया जावे, मानादि कषाय पोषण किया जावे, परको कष्ट देकर धर्म माना जावे यह सब भधर्म है, पापवर्द्धक है। उसके फलसे जीवको संसारमें घोर दुःख सहना होगा।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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