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________________ (संखित्तयरीउइमा) यह संग्रहणीनीगाथा संक्षेप मात्र कहे है (सरीर) शरीग्द्वार १ (मोगाहणाय) अवगाहनाद्वार २ (संग्घयणा) संग्घयणद्वार ३ (सन्ना) संज्ञाद्वार ४ (संठाण) संस्थानद्वार ५ (कसाया) कषायद्वार ६ (लेस) लेश्याद्वार ७ (इंदिय) इन्द्रियद्वार ८ (दुसमुग्घाया) दो प्रकारे समुद्घातद्वार ९ ॥३॥ दिठीदसणनाणे जोगुवओगोववायचवणठिई । पजत्तिकिमाहारे सन्निगइआगईवेए ॥ ४॥ (दिठी) दृष्टिद्वार १० (दसण) दर्शनद्वार ११ (नाणे) ज्ञानद्वार अज्ञानद्वार १२ (जोगु) योगद्वार १३ (वओगो) द उपयोगद्वार १४ (ववाय) उपपातद्वार १५ (चवण) च्यवनद्वार १६ (ठिइ) स्थितिद्वार १७ (पजत्ति) पर्याप्तिद्वार १८ (किमाहारे) किमाहारद्वार १९ (सन्नि) संज्ञाद्वार २० (गई ) गतिद्वार २१ (आगई ) आगतिद्वार २२ (वेद) वेदद्वार २३ चपुन अल्पबहुत्वद्वार २४ इति चौवीशद्वार जाणना ॥४॥ ६चउगभतिरियवाउसु मणुआणपंचसेसतिसरीरा । थावरचउगेदुहओ अंगुलअसंखभागतणू ॥५॥ 6 (चउगष्भतिरियवाउसु) गर्भजतिर्यच और वाउकायके औदारिक वैक्रिय तेजस और कार्मण यह चार शरीर होते है (मणुआणपंच) ओर मनुष्योके पांचोही शरीर होते है (सेसतिसरीरा) बाकीके एकवीश दंडकोके विषे तिन ४ तिन शरीर है १३ देवता १ नारकी यह १४ दंडकमें वैक्रिय १ तेजस २ कार्मण ३ यह ३ शरीर होवै थावर ४ बिकदालेंद्री ३ एवं ७ दंडकमें औदारिक १ तेजस २ कार्मण ३ यह ३ शरीर होवे इति १ शरीरद्वार ॥॥ ५॥ (थावरचउ ACHCECECHAMAAL NAAMKARAMSARAMMAUSA
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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