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________________ दंडकप्रकरणम् अर्थ सहितम् ॥३४॥ CARRRRRRR गेदुहओ) वनस्पतिवरजके चार स्थावरको जघन्य और उत्कृष्ट ऐसे दो प्रकारे (अंगुलअसंखभागतणु) अंगुलके असं5 ख्यातमें भागे शरीरकी अवगाहना होति है ॥५॥ | सवेसिपिजहन्ना साहावियअंगुलस्ससंखसो । उक्कोसपणसयधणू नेरइयासत्तहत्थसुरा ॥ ६ ॥ । (सबेसिपिजहन्ना) सब दंडकोके विषे जघन्यसें (साहावियअंगुलस्सअसंखंसो) स्वाभाविक अंगुलके असंख्यातमे भागे शरीर होते है (उक्कोसपणसयघणू) और उत्कृष्टी अवगाहना पांचसें धनुष्यकी (नेरइया) नारकीके जीवोंकी हैं। 81(सत्तहत्थसुरा) और देवोंका उत्कृष्टा शरीरमान सात हाथका होता है ॥ ६॥ गष्भयतिरिसहस्सजोयण वणस्सईअहियजोयणसहस्सं । नरतेइंदितिगाऊ बेइंदियजोयणेबार ॥७॥ है। (गष्भयतिरिसहस्सजोयण) गर्भजतिर्यचका शरीर एक हजार जोजनका है (वणस्सईअहियजोयणसहस्सं) और में वनस्पतिकायका शरीर एक हजार जोजनसें कुछ अधिक होते है (नरतेइंदितिगाऊ) मनुष्य और तेइंद्रिका शरीर तिन गाउका होता है (बेइंदियजोयणेबार) और वेइंद्रिका शरीर बारह जोजनका है ॥७॥ जोयणमेगंचउरिंदि देहमुच्चत्तणंसुएभणियं । वेउवियदेहपुण अंगुलसंखंसमारंभे ॥ ८॥ (जोयणमेगंचउरिंदि) एक जोजन चौरंद्रिका (देहमुच्चत्तणंसुएभणियं) शरीरका उंचपणा सूत्रमे कहा है (वेउबि ॥ ३४ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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