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अवश्यही सम्यक्त्व हो (भावेणसद्दहंतो) और भावसें जो सर्द है तो ( आयाणमाणेवि) अजान जीवोको भी ( सम्मत्तं ) सम्यक्त्व प्राप्ति होवै ॥ ५१ ॥
सवाइं जिणेसर भासिआई बयणाईनन्नहाहुंति । इअबुद्धीजस्समणे सम्मत्तंनिच्चलंतस्स ॥ ५२ ॥ (साई) सर्व (जिणेसरभासिआई) जिनेश्वर महाराजके कहे हुए (वयणाई) बचन (नन्नहाहुति) अन्यथा नही हैं अर्थात् सत्य है (इअबुद्धीजस्समणे) ऐसी बुद्धि जिसके मनमें होवे ( सम्मत्तंनिच्चलंतस्स) उस प्राणीको निश्चल सम्यक्त्व होवे ॥ ५२ ॥ अंतोमुहुत्तमित्तंपि फासिअंहुज्जजेहिंसम्मत्तं । तेसिंअवढपुग्गल परिअहो चेवसंसारो ॥ ५३ ॥ (अंतोमुहत्तमित्तंपि ) एक अन्तर मुहुर्त्तमात्र भी ( फासिअंहुज्ज जेहिं ) स्पर्श हुआ हो जिसको ( सम्मत्तं ) सम्यक्त्वका ( तेसिं) तिस जीवको (अवड) अर्ध ( पुग्गलपरिअट्टो ) पुद्गल परावर्ततक उसको परिभ्रमण करना होगा ( चेव ) निश्चय करेके ( संसारो ) संसार में बाद मोक्षमें जावेंगे ॥ ५३ ॥
उस्सप्पिणी अनंता पुग्गलपरिअडओमुणेअवो । तेणंतातीअद्धा, अणागयद्दाअनंतगुणा ॥ ५४ ॥
( उत्सप्पिणी अनंता ) अनन्ती उत्सपिर्णी और अनन्ती अवसर्पिणी जाने पर ( पुग्गलपरिअट्टओ मुणेअबो ) एक पुद्गल परावर्त्तन होता है ( तेणंतात्तीअद्धा ) तैसा अनन्ता पुद्गल परावर्त्तत अतितकाले हो चुके ( अणागयद्धाअनंतगुणा और अनागतकाले अनन्तगुणा आगे जावेंगे ॥ ५४ ॥