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________________ अर्थ नवतत्त्वप्रकरणम् ॥३२॥ जिणअजिणतित्थतित्था गिहिअन्नसलिंगथीनरनपुंसा । पत्तेअसयंबुद्धा बुद्धबोहिक्वणिक्वाय ॥ ५५॥ | (जिण) जिनसिद्ध १ (अजिण) अजिनसिद्ध २ (तित्थ ) तीर्थसिद्ध ३ (तित्था) अतीर्थसिद्ध ४ (गिहि ) गृहीलिंग- |सहितम् सिद्ध ५ (अन्न) अन्यलिंगेसिद्ध ६(सलिंग) स्वलिंगसिद्ध ७ (थी) स्त्रीलिंगसिद्ध ८ (नर) पुरुषलिंगसिद्ध ९ (नपुंसा) नपुंसकलिंगसिद्ध १० (पत्तेअ) प्रत्येकबुद्धसिद्ध ११ (सयंबुद्धा) स्वयंबुद्धसिद्ध १२ (बुद्धबोहि) बुद्रबोधितसिद्ध |१३ (क्वणिक्वाय) एकसिद्ध १४ और अनेकसिद्ध १५ यह सिद्धके पन्द्रह भेद संक्षेपसें कहा फिर विशेष दिखलाते है ॥५५॥ |जिणसिद्धाअरिहंता अजिणसिद्धायपुंडरियपमुहा। गणहारितित्थसिद्धा अतित्थसिद्धायमरुदेवी॥५६॥ (जिणसिद्धा) तीर्थकर होके मोक्ष गये वह तीर्थकरसिद्ध (अरिहंता) रिषभादि अरिहंतसिद्ध १ (अजिणसिद्धायपुंडरियपमुहा) अजिनसिद्ध सामान्य केवली पुंडरिक गणधर आदि २ (गणहारितित्थसिद्धा) गणधर गौतमादि तीर्थ है |सिद्ध ३ (अतित्थसिद्धायमरुदेवी) अतीर्थसिद्ध वह मरुदेवी ४ ॥५६॥ गिहिलिंगसिद्धभरहो वलकलचीरीयअन्नलिंगम्मि । साहुसलिंगसिद्धा थीसिद्धाचंदणापमुहा॥ ५७॥18 | (गिहिलिंगसिद्ध) गृहीलिंग सिद्ध हुये (भरहो) वह भरतादि ५ (वलकलचीरीय) वल्कलचीरीयादि तापशके है वेषमें जो सिद्ध हुये (अन्नलिंगम्मि) वह अन्यलिंग सिद्ध जानना ६ (साहुसलिंगसिद्धा) साधुके वेषमें जो सिद्ध हुए ॥३२॥ वह स्वलिंगसिद्ध ७ (थीसिद्धाचंदणापमुहा) स्त्रीके लिंगमें जो सिद्ध हुए वह चंदनबालादि ८॥५७ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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