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________________ AAAAAAAES है नाणंतरायदसगं नवबीयनीयसायमिच्छत्तं । थावरदसनरयतिगं कसायपणवीसतिरियदुगं ॥१८॥ | (नाण) पाँच ज्ञानावरणी मतिज्ञानावरणी १ श्रुतज्ञानावरणी २ अवधिज्ञानावरणी ३ मनःपर्यवज्ञानावरणी ४ और केवल ज्ञानावरणी ऐसे पाँच (अंतराय) अन्तराय दानान्तराय १ लाभान्तराय २ भोगान्तराय ३ उपभोगान्तराय ४ और वीर्यान्तराय यह पांच अन्तराय (दसगं) ऐसे दश भेद कहे (नवबीये) और नव दुसरा दर्शनावरणी कर्मके निद्रा १ निद्रानिद्रा २ प्रचला ३ प्रचलाप्रचला ४ थिणद्धी ५ चक्षुदर्शनावरणी ६ अचक्षुदर्शनावरणी ७ अवधिदर्शना-17 वरणी ८ और केवलदर्शनावरणी ९ ऐसे नव और पूर्वकादशमिलकर ओगुणीस (नीय) निचगोत्र २० (असाय) असातावेदनीकर्म २१ (मिच्छत्तं) मिथ्यात्व मोहनीनामकर्म २२ (थावर) स्थावरको (दस) दशको इस दशकेका भेद आगे कहेंगे ३२ (नरयतिगं) नरकत्रिक नरकगती नरकानुपूर्वी और नरक आयु ऐसे तीन ३५ (कसायपणवीस) कशाय पचीस सो देखलाते है अनन्तानुबंधी आदि क्रोधके चार तथा अनन्तानुबंधि आदि मानके चार फिर अनन्ता* नुबंधि आदि मायाके चार और अनन्तानुबंधी आदि लोभके चार यह सोल कषाय अब नवनो कषाय कहते हैं हास्य १ रति २ अरति ३ शोक ४ भय ५ दुगंछा ६ स्त्रीवेद ७ पुरुषवेद ८ नपुंसकवेद ९ पूर्वके सोल कषाय और यह नव 8 दानोकशाय सब मील २५ तथा पूर्वके ३५ सब मिल साठ (तिरियदुर्ग) और तिर्यचद्विक इस लिये तिर्यचगति ६१ और तिर्यंचानुपूर्वी ६२॥१८॥ इगवितिचउजाईओ कुखगइउवघायहुंतिपावस्स । अपसत्थंवण्णचउ अपढमसंघयणसंठाणा ॥१९॥ %ENAMOKAALCCAM
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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