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नवतत्त्व
भाषाटी
सार्थ
कासहित.
॥२४॥
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(इग) एकेन्द्रिजाति (वि) बेइन्द्रिजाति (ति) तेरिन्द्रीजाति (चउ) और चोरिन्द्रिजाति (जाईओ) ऐसे चार जाति नामकर्म यह सब मिलके छासठ (कुखगइ) अशुभ विहायोगति नामकर्म इस नामकर्मसें जीव गधेकी नाइ चले सो ६७ (उवघाय) उपघात नामकर्म ६८ (हुतिपावस्स) वह सब पापके भेद है (अपसत्थंवण्णचउ) अशुभवर्णादि चार ७२ (अपढमसंघयणसंठाणा) प्रथमका संघयनको छोडकर ऋषभनाराच १ नाराच २ अर्धनाराच ३ कीलीका ४ और सेवठा यह पांच संघयन और प्रथमका संस्थान छोडकर न्यग्रोध १ सादि २ कुब्ज ३ वामन ४ और हुंडक यह पांच संस्थान सब मिलकर पापतत्त्वका व्यासी भेद हुआ ॥ १९॥ थावरसुहुमअपजं साहारणमथिर मसुभदुभगाणि । दुस्सरणाइज्जजसं थावरदसगंविवजत्थं ॥ २० ॥
(थावर) स्थावर नामकर्म १ (सुहम ) सूक्ष्म नामकर्म २ (अपज्ज) अपर्याप्ति नामकर्म ३ (साहारणं) साधारण नामकर्म ४ (अथिर) अस्थिर नामकर्म ५ (असुभ) अशुभ नामकर्म ६ (दुभग्गणि) दुर्भाग्य नामकर्म ७ (दुस्सर)। दुःस्वर नामकौ ८ (अणाइज) अनादेय नामकर्म ९ (अजसं) अपयश नामकर्म १० (थावरदसगंविवज्जत्थं ) यह | स्थावरको दशको त्रससे विपरित जान लेना ॥२०॥इतिपापतत्त्वम् ॥ इंदिअकसायअवय जोगापंचचउपंचतिन्नीकमा । किरिआओपणवीसं इमाओताओअणुक्कमसो ॥२१॥ (इंदिअ) इन्द्रियो पांच (कसाय) क्रोधादि कषाय चार (अवय) प्राणातिपातादि अव्रत पाँच (जोगा) मनादि
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