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________________ SASARANASACRECIPE बारस जोयण तिन्ने, व गाउआ जोयणं च अणुकमसो। बेइंदिय तेइंदिय, चउरिंदिय देहमुच्चत्तं ॥२८॥ (बेइंदिय)द्वीन्द्रिय, (तेइंदिय) त्रीन्द्रिय और (चरिंदिय) चतुरिन्द्रिय जीवोंके, (देहमुच्चत्तं) शरीरका प्रमाण, (अणुकमसो) क्रमसे (बारस जोयण ) वारह योजन, (तिन्नेव गाउआ) तीन गव्यूत-तीन कोस-और (जोयणं) एक योजन है ॥२८॥ | भावार्थ-द्वीन्द्रिय जातिके जीवोंका शरीर-प्रमाण, अधिकसे अधिक, बारह योजन हो सकता है, इससे अधिक नहीं । इसका मतलब किसी द्वीन्द्रिय जातिसे है, संखहोता है कुल द्वीन्द्रियोंसे नहीं; ऐसा ही त्रीन्द्रिय जीवोंका शरीर-प्रमाण कानखजुरा तीन कोस और चतुरिन्द्रिय जीवोंका शरीर-प्रमाण भमरोका एक योजन है. प्र०-योजन किसे कहते हैं? उ.-चार कोसका एक योजन होता है. प्र०-गव्यूत किसे कहते हैं ? उ०-एक कोसको. धणुसयपंचपमाणा, नेरइया सत्तमाइपुढवीए । तत्तो अद्धभृणा, नेया रयणप्पहा जाव ॥ २९ ॥ (सत्तमाइ) सातवीं (पुढवीए) पृथ्वीके (नेरइया) नारक-जीव, (धणुसयपंचपमाणा) पाँचसौ धनुष प्रमाणके है, (रयणप्पहा जाव) रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथ्वीतक, (तत्तो) उससे (अद्धभृणा) आधा २ कम प्रमाण (नेया) जाणना ॥ २९॥ जीववि.३
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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