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________________ जीव विचार ॥१२॥ SUESRESEARCH RECEM कायामें, (ठिई ) स्थितिका प्रमाण अर्थात् स्वकायस्थिति-प्रमाण, (पाणा) प्राण-प्रमाण और (जोणिपमाणं) योनि- भाषाटीप्रमाण, (जेसिं) जिनोंके, (जं अत्थि) जितने हैं, (तं) उसे, (भणिमो) कहते हैं ॥ २६ ॥ कासहित. भावार्थ-पहले एकेन्द्रिय आदि जीव कहे गये हैं, उनके शरीरका प्रमाण, आयुका प्रमाण, स्वकायस्थितिका प्रमाण-एकेन्द्रियादि जीवोंका मर कर फिर उसी कायमें पैदा होना, 'स्वकायस्थिति' कहलाता है उसका प्रमाण; प्राण-प्रमाण-दस प्राणोंमेंसे अमुक जीवको कितने प्राण है इसकी गिनती; योनि-प्रमाण-चौरासी लाख योनियोंमेंसे किन किन जीवोंकी कितनी कितनी योनियाँ हैं इस विषयकी गिनती; ये बातें आगे कही जायँगी. | अंगुलअसंखभागो, सरीरमेगिंदियाण सव्वेसिं । जोयणसहस्समहियं, नवरं पत्तेयरुक्खाणं ॥ २७ ॥ (सबेसि) सम्पूर्ण (एगिंदियाण) एकेन्द्रियोंका (सरीरं) शरीर (अंगुलअसंखभागो) उँगलीके असंख्यातवें भाग जितना है, (नवरं) इतनाविशेषहैं लेकिन (पत्तेयरुक्खाणं) प्रत्येकवनस्पतियोंका शरीर, (जोयणसहस्समहियं) हजारयोजनसे कुछ अधिक है ॥२७॥ | भावार्थ-सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीवोंका शरीर-प्रमाण, उँगलीके असंख्यातवें भाग जितना है, लेकिन प्रत्येक वनस्पतिकायके जीवोंका शरीरप्रमाण, हजार योजनसे कुछ अधिक है। यह प्रमाण समुद्रके पद्मना-1॥१२॥ लका तथा ढाई द्वीपसे बाहरकी लताओंका है. बनAARORS
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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