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दस भेद हुए ये दसों पर्याप्त और अपर्याप्त रूपसे दो प्रकारके हैं, इसलिये बीस भेद हुए, इनमें पूर्वोक्त अट्ठाइस भेदोंके मिलानेपर तिर्यञ्चोंके ४८ भेद होते हैं ।
नारक जीवोंके सात भेद कह चुके हैं, वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त रूपसे दो तरहके हैं, इस तरह नारक जीवोंके चौदह भेद होते हैं. देवोंके १९८, मनुष्योंके ३०३, तिर्यञ्चोंके ४८ और नारकोंके १४ भेद, इन सबको मिलानेसे ५६३ भेद, संसारी जीवके हुए।
सिद्धा पनरसभेया, तित्थ - अतित्थाइ - सिद्ध भेएणं । एए संखेवेणं, जीवविगप्पा समक्खाया ॥ २५ ॥
( तित्थ अतित्थाइ सिद्ध भेएणं) तीर्थ - सिद्ध, अतीर्थ - सिद्ध आदि भेदोंसे, (सिद्धा) सिद्ध - जीवोंके ( पनरस भेया ) पन्दरह भेद हैं. ( संखेवेणं) सङ्क्षेपसे, (एए) ये - पूर्वोक्त, (जीवविगप्पा ) जीव - विकल्प - जीवोंके भेद, ( समक्खाया) कहे गये ॥ २५ ॥
भावार्थ - तीर्थ - सिद्ध, अतीर्थ-सिद्ध आदि सिद्धोंके पन्दरह भेद "नवतत्त्व" में कहे हैं, उसे देखलेना चाहिये. सङ्क्षेपमें जीवोंके भेद इस ग्रन्थमें कहे गये हैं.
एएलिं जीवाणं, सरीरमाऊ - ठिई सकायंमि । पाणा जोणिपमाणं, जेसिं जं अत्थि तं भणिमो ॥२६॥ (एएसिं) इन- पूर्वोक्त (जीवाणं) जीवोंके, ( सरीरं ) शरीर - प्रमाण, ( आऊ) आयुः - प्रमाण, ( सकायंमि ) स्व