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________________ नयचक्रसार मूळ बालावबोधसहित ॥ ९२॥ OSIGRISRIRACHISASIRAHORAS जिहां लगे आत्मानुं शुद्धस्वरूप चिदानंदघन ते साध्यमां नथी अने पुद्गलसुखनी आशायें विष, गरल, अन्योन्य अनुष्ठान जे करवु ते संसारहेतु छे माटे साध्यसापेक्षपणे स्याद्वादश्रद्धाये साधन करवं एहिज मार्ग छे अने ए मार्गनी जे प्रतीतरुचि सम्यक्त्व कहिये. ते सम्यक्त्व ग्रंथिभेद कस्खा पामिये ते ग्रंथिभेद तो त्रण करण करे तो जडे ते त्रण करण जीव करे तेवारें सम्यक्दर्शन पामे ते त्रण करणमा पेहेलुं यथाप्रवृत्तिकरण, बीजुं अपूर्वकरण, त्रीजु अनिवृत्तिकरण ए करण सर्व संज्ञी पचेंन्द्रि करे तेमां प्रथम यथाप्रवृत्तिकरण ते भव्य तथा अभव्य पण करे कोईक जीव अनंतिवार करे |ते यथाप्रवृत्तिकरण- स्वरूप लखियें छैये. | सर्वकर्मनी उत्कृष्टस्थितिना बांधनार जीवने संक्लेश घणो छ माटे यथाप्रवृत्तिकरण करे नही, उक्तंच विशेषावश्यकेउक्कोसठिई न लभइ, भयणा एएसु पुबलद्धाए ॥ सबजहन्नठिइसुवि, न लभ्भइ जेण पुवपडिवन्नो ॥१॥ माटे कर्मनी उत्कृष्टस्थितिनो बांधनार जीव ते चार सामायिकनो लाभ न पामे अने जे जीव सात कर्मनी जघन्यस्थिति बांधे ते जीव तो गुणवंतज छे ए रीत छे माटे जेवारें एक कोडाकोडी सागरोपम पल्योपमने असंख्यातमें भागे उणी स्थिति बांधतो होय ते यथाप्रवृत्तिकरण करे जे जीव कर्मक्षपणारूप शक्ति पाम्यो न हतो ते शक्ति पाम्यो तेने यथाप्रवृत्तिकरण कहिये उक्तं च भाष्ये येन अनादिसंसिद्धप्रकारेण प्रवृत्तं कर्मक्षपणं क्रियते अनेनेति करणं जीवपरिणाम एव उच्यते अनादिकालात् कर्मक्षपणप्रवृत्तावध्यवसायविशेषो यथाप्रवृत्तिकरणमित्यर्थः क्षयोपशमी चेतनावीर्य जे संसारनी असारता जाणे संसार दुःखरूप करी जाणे तेथी परिग्रह शरीरथी खरे उद्धेगें ॥ ९२ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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