SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जइ जिणमयं पवजह, ता मा ववहारनिच्छएमुयह। एकेणविणा तित्थं, छिज्जई अन्नेणओ तच्च॥८॥ | अर्थ-अहो भव्य प्राणी! जोतमने जिनमतनी चाहना छे अने जो तुमे जिनमतने इच्छो छो मोक्षने चाहो छो तो निश्चें नय अने व्यवहार नय छांडशो नही एटले बेहु नय मानजो व्यवहार नय चालजो अने निश्चय नय सद्दहजो जो तुमे व्यवहार नय उथापशो तो जिन शासनना तीर्थनो उच्छेद थाशे जेणे व्यवहार नय नमान्यो तेणे गुरु वंदना जिन भक्ति तप पच्चखाण सर्व नमान्या एम जेणे आचार उथाप्यो तेणे निमित्त कारण उथाप्यो अने निमित्त कारण विना |एकलो उपादान कारण ते सिद्ध नथाय माटे निमित्त कारण रूप व्यवहार नय जरूर मानतुं अने जो एकलो व्यवहार |नय मानियें तो निश्चय नय ओलख्या विना तत्व- स्वरूप जाण्यु नही माटे तत्वमार्ग अने मोक्षमार्ग ते निश्चय नय विना |पामियें नही अने तत्व ज्ञानविना मोक्ष नथी एटले निश्चयविना व्यवहार निःफल छे अने निश्चय सहित व्यवहार ते प्रमाण छे तेनो दृष्टान्त-जेम सोनाना आभूषणमां उपधातु अथवा किणजो मिल्यो होय तेपण उंचा सोनाने भावें लेइ राखियें छैयें अने जो ते किणजो तथा सोनुं जूदुं करियें तो सहु कोइ सोनाने ले पण कोइ किणजो जे कुधातु ते लीये नही तेम निश्चय नय सोना समान छे माटे निश्चय नय सहित सर्व भला छे अने निश्चय नय विना सर्व अलेखे छे माटे |आगममा निश्चय व्यवहार रूप मोक्ष मार्ग छे ते कह्यो. वली शरीर ऊपर मोह करे नही ते विषे.
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy