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________________ प्रकरणम् आगमसार ॥६२॥ उजले कपडे शिणगार करी गच्छना ममत्वभावें माचतां स्वेच्छाचारी वीतरागनी आज्ञा भांजता जे तप क्रिया करे छे जाते पण द्रव्य निक्षेपामा छे अथवा ज्योतिष वैद्यक करे छे अने पोताने आचार्य उपाध्याय कहेवरावीने लोकपासें 8 महिमा करे छे ते पत्रीबंध खोटा रूपैया जेवा छे घणा भव भमसे माटे अवंदनीक छे ए साख उत्तराध्ययन मध्ये अनाथी मुनिना अध्ययन थकी जाणवी अने सूत्रना अर्थ गुरुमुखे सिख्याविना तथा नय प्रमाण जाण्या विना निश्चे आत्मानुं स्वरूप ओलख्या विना नियुक्ति विना उपदेश आपे छे ते पोते तो संसारमा बुड्या छ पण जे तेमनी पासे बेसे छे तेमने पण संसारमा बुडावे छे एम प्रश्नव्याकरणसूत्र तथा अनुयोगद्वारसूत्रमा कर्तुं छे “अजत्थ चेव | सोलसमं” इत्यादि अने भगवती सूत्रमा पण कर्तुं छे “सुतत्थो खलु पढमो, बीओ निजुत्तिमीसओ भणिओ, तइओ य निर वसेसो एस विही होइ अणुओगो” अने केटलाक एम कहे छे जे अमे सूत्र ऊपर अर्थ करिये छैयें तो नियुक्ति तथा टीका प्रमुखनुं शुं काम छे तेपण मृषावाद छे केम के श्रीप्रश्नव्याकरणमां “वयणतियं लिंगतियं” इत्यादिक जाण्या विना | अने नय निक्षेप जाण्या बिना जे उपदेश आपे ते मृषावाद छे एम अनेक सूत्रमा कयुं छे माटे बहुश्रुत पासे उपदेश सांभलवो श्री उत्तराध्ययन मध्ये बहुश्रुतने मेरुनी तथा समुद्रनी अने कल्पवृक्षादि सोल उपमा दीधी छे ए द्रव्यनिक्षेपो कह्यो. ४ भावनिक्षेपो कहे छे. जे नाम स्थापना अने द्रव्य एत्रण निक्षेपा ते एक भावनिक्षेपा विना अशुद्ध छे जे नाम तथा आकार लक्षण गुण सहित वस्तु ते भाव निक्षेपो जाणवो उवओगोभाव इति वचनात् एटले पूजा दान शील ॥६२॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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