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________________ SAGAC है तप क्रिया ज्ञान ए सर्व भावनिक्षेपे सहित लाभy कारण छे इहां कोइ कहेशेजे मनना परिणाम दृढ करीने जे करियें | तेने भाव कहिये एम कहे छे ते झूटा छे ए तो सुखनी वांछायें मिथ्यात्वी पण घणा करे छे ते गणातुं नही इहां सूत्रनी साखे वीतरागनी आज्ञा हेय उपादेयनी परिक्षा करी अजीवतत्व तथा आश्रवतत्व अने बन्धतत्व ऊपर हेय केहतां त्याग भाव अने जीवना स्वगुण जे संवर निर्जरा तथा मोक्षतत्व ऊपरें उपादेय परिणाम ते भाव कहिये एटले रूपीगुण ते द्रव्य निक्षेप छे अने अरूपीगुण ते भावनिक्षेप छे एटले मन वचन काया लेश्यादिक सर्व द्रव्य निक्षेपामा छ अने ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य ध्यान प्रमुख सर्व गुण भावनिक्षेपामां छे ए भाव निक्षेपो ते नामस्थापना तथा द्रव्य सहित होय एटले चार निक्षेपा कह्या. | हवे चार निक्षेपा पदार्थ ऊपर लगाडी देखाडे छे नाम जीव ते चेतना अथवा मांचाने एक वाणने जीव कही बोलावे छे. ते नाम निक्षेपे जीव, मूर्ति प्रमुख थापि ते स्थापना जीव एकेंद्रीथी पंचेंद्री पर्यंत सर्व जीव छे पण उपयोग मिले नहि ते द्रव्यजीव अने मूर्तिमा जीव स्वरूप ओलखी समकितना उपयोगमा छे ते भावजीव एम धर्मास्तिकायादिक द्रव्यमां पण जाणतुं नामथी धर्मास्तिकाय कही बोलाववो तेना नाम धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय एहवा अक्षर लखवा दृष्टांत कारणे काइक वस्तु थापवी ते स्थापना धर्मास्तिकाय तथा धर्मास्तिकाय जे असंख्यातप्रदेशी धर्मद्रव्य छे ते द्रव्य धर्मास्तिकाय ए धर्मास्तिकायने जेवारें चलण सहाय गुणनी अपेक्षासहित ओलखिये ते भाव धर्मास्तिकाय. हवे कोइकनो साधु एहवो नाम छे ते नाम साधु अने स्थापना करिये ते स्थापनासाधु तथा जे पंचमहाव्रत पाले A SSAGAR
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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