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________________ पर्याय जाणे तेने ज्ञानी कहिये श्रीउत्तराध्ययने मोक्षमार्गे कह्यो छे. गाथा " एयं पंचविहनाणं दबाणयगुणाणय, पज्झवाणं सबेसिंच नाणं नाणी हिं देसियं ॥ १ ॥ माटे वस्तु सत्ता जाण्या विना ज्ञानी समजवुं नही अने नवतत्व ओलखे ते समकेति अने एहवा ज्ञान दर्शन विना जे कहे के अमे चारित्रिआ छैयें ते पण मृषावादी छे कारण के श्रीउत्तराध्ययन सूत्र मध्ये कां छे जे "नाणं दंसण नाणं नाणेण विना न हुंति चरण गुणा" ए वचन छे तेमाटे आज केटलाक ज्ञान हीन क्रियानो आडंबर देखाडे छे ते ठग छे तेहनो संग करवो नही ए बाह्य करणी अभव्यजीवने पण आवे | माटे ए बाह्य करणी ऊपर राचबुं नही अने आत्मानुं स्वरूप ओलख्या विना सामायक पडिकमणा पच्चक्खाण करवां ते सर्व द्रव्य निक्षेपामां पुण्याश्रय छे पण संवर नथी श्रीभगवती सूत्र मध्ये कयुं छे “आया खलु सामाइयं" ए आलावाथी जाणजो तथा जीव स्वरूप जाण्या विना तप संयम पुण्य प्रकृति ते देवताना भवनुं कारण छे “पुत्र तवेणं पुत्र संयमेणं देवलोए उववज्जंति नो चेवणं आयभाववत्तबयाए" ए आलावो भगवतीमां कह्यो छे तथा जे क्रियालोपी आचारहीन छे अने ज्ञानहीन छे मात्र गच्छनी लाजें सिद्धान्त भणे वांचे छे व्रत पच्चक्खाण करे छे ते पण द्रव्य निक्षेपो जाणवो एम श्री अनुयोगद्वारमां कह्युं छे. जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छकायनिरणुकंपा हयाइव उद्दामा गयाइव निरंकुसा घट्टामट्ठा तुप्पोट्ठा ॥ पंडुरपडपाउरगणा जिणाणमणाणाएसछंदा विहरिऊण उभओ कालं आवस्सगस्स उवद्वंति से तं लोगुत्तरियं दधावस्सयं ॥ अथ - जेने छकायनी दया नथी घोडानीपेरें उन्मद छे हाथीनीपेरें निरंकुश छे पोताना शरीरने धोवतां मसलता
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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