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________________ C प्रकरणम् आगमसार छे तेमज जिनवरनाध्याने जिनप्रतिमा पूजता लाभ थाय छे एम युक्ति करतां तथा आगमनी साखे पण जिनप्रतिमाने जिनसमान माने ते आराधक अने जे जिनप्रतिमाने न माने तेणे स्थापना निक्षेपो उथाप्यो अने स्थापना उथापी तो द्रव्य तथा भाव निक्षेपो थापना विना थाय नही माटे द्रव्य तथा भाव पण उथाप्यो एम त्रण निक्षेपा उथाप्या तेवारें सिद्धान्त उथाप्याज माटे जे जिनप्रतिमाने नही माने ते विराधक जाणवो ते स्थापना इतर अने यावत् कथिक ए ॥६१॥ 8 बे भेदं छे. ३ द्रव्य निक्षेपो कहे छे, जेनो नाम पण होय तथा आकार थापना गुण पण होय अने लक्षण होय पण आत्मोपयोग न मिले ते द्रव्य निक्षेपो जाणवो एटले अज्ञानी जीव ते जीव स्वरूपना उपयोग विना द्रव्य जीव छे “अणुव ओगोदर" इति अनुयोगद्वारवचनात् वली कडं छे जे सिद्धान्त वांचतां पूछतां पद अक्षर मात्रा शुद्ध अर्थ करे छे अने गुरुमुखे सद्दहे छे ते पण शुद्ध निश्चे पोतानी सत्ता ओलख्या विना सर्व द्रव्य निक्षेपामा छे जे भाव विना द्रव्यपणो छे ते पुण्यबंधनुं कारण छे पण मोक्षनुं कारण नथी एटले जे करणीरूप कष्ट तपस्या करे छे अने जीव अजीव पदार्थनी |सत्ता ओलखी नथी तेने भगवती सूत्रमा अवती तथा अपच्चरकाणी कह्यां छे तथा जे एकली बाह्य करणी करे छे अने |पोते साधु कहेवाय छे ते मृषा वादी छे एम उत्तराध्ययन सूत्रमा कडं छे "नमुणीरन्नवासेणं" एवचनें “नाणेणय मुणी होइ" एवचनथी जे ज्ञानवान ते मुनि छे अने जे अज्ञानी ते मिथ्यात्वी छे तथा कोइक गणितानुयोगना नरक Cel॥६१॥ || देवताना बोल अथवा यति श्रावकनो आचार जाणीने कहे जे अमेज्ञानी छैये ते पण ज्ञानी नथी पण जे द्रव्य गुण|| SAKASGEEMOCROSAROKAR CCCCAUSTRA
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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