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________________ ६सीया सीओया विय, बत्तीस सहस्स पंचलखेहिं। सत्वे चउदस लक्खा, छप्पन्न सहस्स मेलविया ॥२५॥ अर्थ-प्रत्येक (सीया सीओयाविय ) सीता और सीतौदा यह दोनो नदिये. अपने २ (बत्तीस सहस्स पंचलक्खेहिं) पांच लाख और बत्तीस हजार नदियो सहीत समुद्रमे जाती है, एवं (सबे) सर्व इस जंबुद्वीपके अन्दर. (चउदसलरूखा) चौदह लाख (छप्पन्न सहस्स) छप्पन हजार नदियें (मेलविया) मिलानेसें होती है ॥२५॥ भावार्थ-सीता और सीतौदा यह दोनो अपनी २ पांच २ लाख बतीश २ हजार नदियांके परिवारसे समुद्रमें |जाके मिलती है ॥ एवं इस जंबुद्वीपमें सब नदियांकी संख्या चौदह लाख छप्पन हजार होती है ॥ २५ ॥ छज्जोयण सकोसे, गंगा सिंधुण वित्थरो मूले । दसगुणिओ पजते, इय दुदु गुणणेण सेसाणं ॥२६॥ | अर्थ (गंगा सिंधूण) गंगा और सिंधु इन दो नदियांका (मुले) मूलमें याने जहां पद्मद्रहसे निकली है वहां । (सकोसे) कोशसहित (छ जोयण) छ योजन (वित्थरो) विस्तार है॥ वाद विस्तार वधते २ (दसगुणिओ) दशगुणायाने साढा बासठ योजन (पजते) पर्यंत हो. समुद्र में मिलती है. (इय) एसे (दुदु गुणणेण) दुगणी २ (सेसाणं) | शेष पूर्वोक्त नदियोंका निर्गमन और प्रवेश अनुक्रमसें जानना ॥ २६ ॥ | भावार्थ-जहांसै गंगा और सिंधु यह दोनो नदिये निकली है. वहां इसका सवा छ योजनका विस्तार है। और CIRCTC -% A
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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