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________________ अर्थ सहितम् जंबूदीप इन्हीका जहां समुद्र में जाके मिली है उहां साढाबासठयोजनका विस्तार है. इसी तरह इनसे दुणा २ क्रमवार शेष संघयणी- || नदियांका निर्गमन और प्रवेश विस्तार जानना ॥२६॥ प्रकरणम् जोयण सयमुच्चिट्ठा, कणयमया सिहरि चुल्लहिमवंता। रुप्पि महाहिमवंता, दुसुउच्चारुप्य कणयमया २७॥ ॥४९॥ __ अर्थ-एक (सिहरि) शिखरी दुसरा (चुल्ल हिमवंता) लघु हिमवंत ये दो पर्वत (सय) एकसो (जोयण) योजन (मुच्चिछा) उंचे पनेमे, और (कणयमया) स्वर्णमयी है. पुनः एक (रुप्पि) रूपी दुसरा (महाहिमवंता) महाहिमवंत. ये दो पर्वत (दुसुउच्चा) दोसो योजन उंचे पनेमें है, इसमे रूपी पर्वत (रुप्य) चांदीमयी और महाहिमवंत (कणयमया) स्वर्णमई है ॥ २७॥ | भावार्थ-शिखरी और छोटाहिमवंत यह दो पर्वत एकसो योजन उंचे और स्वर्णमयी है, रूपी और महाहिमवंत यह दो पर्वत दोसो योजन उंचे और क्रमसै स्वर्ण और रूप्यमयी है ॥ २७॥ चित्तारि जोयणसए, उच्चिट्ठो निसढ नीलवंतोय।निसढो तवणिजमओ, वेरुलिओ नीलवंतोय ॥२८॥ | अर्थ-(निसढ नीलवंतो) निषध और नीलवंत यह दोनो पर्वत (चत्तारि जोयणसए) च्यारसें योजन (उच्चिठो) उंचे है, इसमे (य) जो (निसढो) निषध पर्वत है वो (तवणिझमओ) तप्त स्वर्णमयी याने लालवर्ण और दुसरा (नीलवंतो) नीलवंत पर्वत जो है वो (वेरुलिओ) वैडुर्य याने नीलारत्नमई है ॥२८॥ ACCIENCE यह दो पर्वत दोसो बाटो निसढ नीलवंतीयत (चत्तारि जोयणसामान लालवर्ण और दुसरा ॥४९॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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