________________ & स्तोत्रादि धर्मसाग थुइ-कल्याण ते श्रेय रूपे मानिया ए, माता वे कूखे महावीर तो, सर्व जिन जननी कूखे ए. आवq कल्याण तिम धार तो // रीय उत्सूत्र है | भांखी जिन पडिमा पूजा ए, ऋतुवंती न पूजे देव तो। जिन पूजती ऋतुवंती थाय ए, पूजे न ते प्रभाविक देव तो // 2 // खण्डनं स्तवन-चोमासु सिद्धाचल करिये रे, मंदिर तलाटीये नित जइये रे / हारे जिन दर्शनना द्वेषो न थइये, जातीडा ! जिन दर्शन सुखकंदो रे / हारे ए तो टाले भवनो फंदो, जातीडा ! जिन दर्शन मत निंदो रे / 1 // अमे जयणाथी इहां जासु रे, प्रभु आणा ते दिलमाहे धरजु रे / हारे तेथी आराधक अमे तरसुं, जातीडा ! चोमा सिद्धाचल करिये रे, मजा०जि०।२। अमे जिन दर्शनना रंगी रे, ढुंढकना नहिं अमे संगी रे / हारे किम थइये जिन दर्शनना भंगी ?, जातीडा ! चो०म० / वर्षाले गिरि मुनि जावे रे, कोश अढी श्रीपौर फरमाचे रे / हारे कल्पसूत्र विरुद्ध किम कहाघे ?, जातीडा ! चो०म०।४। सिद्धगिरि जिनदर्शन सारु रे, ए तो लागे मुझ मन प्यारं रे। होर जिन दर्शने जिनचंद्र तारु, जातीडा ! चो०म० // 5 // (इ) श्रीसिदाचले, आदि जिन आव्या, पूर्व नवाणु वार जी। अजित शांति, चोमासु कीg, गणधर मुनि परिवार जी // दर्शन पूजन, भबिजन कीy, देशना अमृत पीधुं जी। चोमासे तलाटी देरे, जिन दर्शन पूजन, नर स्त्री विमल मिशी ... // 1 // श्रीवाचनाचार्यश्रीमद्गुणविनयगणिविरचितं धर्मसागरीय-उत्सूत्रखण्डनं समाप्तम्