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________________ पाठमनवलोक्यैव, “स्थालिपुलाक"न्यायेन यथा तव स्वयं साक्षादुक्तेऽपि न प्रत्ययस्तथाऽन्यत्राप्यन्यथाऽवस्थिते वस्तुन्यन्यथा प्रत्ययः सर्वत्राप्यवगम्यते, तत्रायं खण्डनप्रकार:-सामायिकं कृत्वैवेर्याप्रतिक्रमणं सर्वशास्त्रेषु पश्योत्पश्यीभूय मा तिष्ट, तथा आवश्यकबृहवृत्ती श्रीहरिभद्रसरिकृतायां तथा आवश्यकचूणौँ तथा नवपदप्रकरणबृहद्वृत्तौ तथा प्रतिक्रमणचूणौँ तथा श्रावकमज्ञप्तीवृत्तौ तथा श्रावकधर्मविधिप्रकरणे तथा योगशास्त्रवृत्तौ तथा श्रीहरिभद्रसूरिकृतपञ्चाशकवृत्तौ (श्रीखरतरगच्छगगनाङ्गणनभोमणिश्रीमदभयदेवसरिकृतायां) तथा श्रावकदिनकृत्यवृत्तौ तथा धावकदिनकृत्यसूत्रे तथा पश्चाशकचूणौँ सामायिकपाठादन्वेवेर्यापाठो दृश्यते, तत्रावश्यकबृहद्वृत्ति(पत्र ८३२ गत) पाठस्त्वयं "इह सावगो दुविधो-इडिपत्तो अणिढिपत्तो य, जो सो अणिढिपत्तो सो चेइयघरे साहुसमीवे वा घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा विसमइ अच्छति वा निवावारो सवत्थ करेति, तत्थ चउसु ठाणेसु णियमा कायर्व-चेइयघरे साधुमूले पोसहसालाए घरे आवासगं करेंतो ति, तत्थ जइ साहुसगासे करेति तत्थ का विही १, जइ परं परभयं णत्यि जइवि य केणइ समं विवाओ पत्थि जइ कस्सइ ण धरेति मा तेण अंछवियच्छियं कज्जिहि त्ति, जइ य धारणगं दण ण गिप्हइ, मा भंडिहित्ति, जइ वावारं ण वावारेति, ताहे घरे चेव सामाइयं काऊण वच्चति एवं-पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाए उवउत्तो जहा साहू भासाए सावज परिहरंतो, एसणाए कई वा लेहुँ वा पडिलेहिउँ पमज्जिउं, एवं आयाणे णिख्खेवणे खेलसिंघाणए ण विगिचति, विगिचंतो वा पडिलेहेति य पमज्जति य, जत्थ चिकृति तत्यवि गुत्तिणिरोहं करेति, एताए विधीए गत्ता तिविधेण णमिऊण साधुणो पच्छा सामाइयं करेति'करेमि भंते ! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चख्खामि, दुविह तिविहेणं जाव साहू पज्जुवासामिति काऊण पच्छा इरियावहियाए पडिक्कमति, पच्छा आलोएत्ता वंदति आयरियादी जहारायणिया, पुणोवि गुरुं वैदित्ता पडिलेहित्ता णिविहो पुच्छति पढति वा, एवं चेइयाइएसवि, |
SR No.600382
Book TitleDharmsagariya Utsutrakhandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvinay Gani, Dharmsagar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1933
Total Pages74
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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