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________________ GORKEECRETARGASARE पविट्टो, कवि पमत्ताण दारवालाण । अस्थाणमि य नंदस्स, आसणे प्रत्तियासीणा ।.६५।। इत्तो य नहायसयला-लंकार विभूसिमा सय राया । नेमित्तियाइ सहिआ, समागओतत्य अत्याणे ॥ ५५ ॥ चाणदण, जंपा नेमिनिआ जा * देष : । एसो मि मुहत्ते, उबविटो आसणे तुम्ह ।। ६७ ॥ जंमि सिरिनंदवंसस्स. छायमवहीरिऊण चिंटेइ । ता एस जह न कुप्पड़, तह सविणयमुट्टवेयवो ॥ ६८ ॥ तो रायणा दवाविय, आसणमन्नं भणाविओ एवं । मुंच निवासणमेयं, पसिर पमि उचविससु॥ १९॥ अह नितद नाणको, नमजुनं आमणे अदिको नं । ननिहो पगं पुण, सम्बजामं जन ठेमि ॥ ७० ॥ इय चितिऊण पभणइ. ठाइस्सह मज्झ कुंडिया इत्थ । मुंचइ य तत्थ तत्तो, निवई दावेइ अन्नयरं ॥ ७१ ।।। तत्थ तिदंडं ठावा, जनोवइयं ठवेइ अनमि । इय जं जंठाविजइ, नं तं रुंधेड़ चाणको ॥ ७२ ॥ तचो स्टो राया, तं क. इढावेइ धरियपाएसु । तो उट्टिय चाणको, कुणइ पइग्नं इमं घोरं ॥ ७३ ।। कोशेश्च भृत्यैश्च निबद्धमुलं, पुत्रैश्वपित्रेश्च विवद्धहै शाखम् । उत्पाव्य नन्दं परिवर्त्तयामि, महामं वायुरिवोगवेगः ।। ७४॥ नन्दकुलकाबुलगी, मत्कोपकृशानुबहलधूमाली। शत्रूच्छेदासिलता, बद्धास्ति शिखा प्रतिज्ञार्थे ॥७५॥ जइ नंदवंसमेयं, न वि उम्मूलेंमि मूलओ चेव । ता सीससिहाबळे, एयं गठिं न छोडेमि ॥ ७६ ॥ जं तुह पिउणो रुबइ, तमिह करिज्जासु इय भणंतेहिं । पुरिसेहि अदचंद, दाऊण तो स निवृढो ॥ ७७ ॥ निग्गंतुण पुराओ, चिंतइ अकोवपरवसेण मए । घोरा कया पइना, नित्थरियव्वा कई इन्दि ॥ ७८॥ कह वा साहससहिओ, पावइ हियइच्छियं न संदेहो। जेणुत्तमंगमित्तेण, राहुणा कवलिओ मूरो ॥७९॥ इय चितंतो एसो, जा अच्छड किच्चकज्ज वामदो । तो तस्स पुवनिमय, संभरियमिमं मुगुरुवयणं ॥८॥जह बिवंतरिएणं, होयध्वं रा.
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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