SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्यविधि ॥३४॥ SUURUSI SNICISHABHASHA अंदोलएहिँ खिल्लंति, इंति चडिऊण विविहजाणेसु । अप्पाणमलंकारिति, हरिसिया मुक्कआसंका ॥ १४१॥ एवं गया | भापकरण पसिद्धि, सा रायगिहमि नंदवावित्ति । दरनिवासी वि जणो, आगच्छइ तं निरिक्खेउं ॥१४२ ॥ जंपेइ य अन्नुन्नं, धन्नो संपुन्नपुन्नभंडारो । नंदमणियारसिट्टी, दीसइ जरसेरिसा वावी ॥१४३॥ एयस्स चेव भुवणे, सहलाई जम्मजीवियधणाई । जेण असारधणाओ, उवज्जिया सासया कित्ती ॥ १४४ ॥ इच्चाइ जणपसंसं, सोउं सवणेहिँ नंदमणियारो। विहसेई अच्चंतं, धारापहओ कयंबुच्च ॥१४५।। इय वट्टते काले, अन्नदिणे नंदसेहिणो देहे। सव्वंगदुक्खजणगा, जाया सोलस इमे रोगा॥१४६॥ जर १ कास २ सास ३ दाहा ४, अत्थी ५ कन्नाणवेयणा ६ अरिसा ७। कंडू ८ कोढ ९ जलोयर १०-सिर ११ कुच्छी १२ दिहिमूलाई १३ ॥ १४७ ॥ अंगारओ १४ अजिन्नं १५, भगंदरो १६ तह य होइ सोलसमो। एएहि रोगेहिं, सो अच्चंत | समभिभूओ ॥ १४८ ॥ तो रायगिहे नयरे, सिंघाडगचच्चराइठाणेसु । पेसेउं नियपुरिसे, नंदो घोसावए एयं ॥ १४९ ॥ जो को वि इत्थ विज्जों, अन्नो वा नंदसिट्ठिणो देहे । रोगाण सोलसन्हं, इक्कं पि हु कह वि अवणेइ ॥ १५० ॥ तस्स धणउव्व तुट्टो, सो देइ धणं दरिदविदवणं । इय दुतिवारं नयरे, सव्वत्थ तेहि उग्घुटं ॥१५१॥ तं सोऊणं विज्जा, मंतियजोइसियपभिइणो य नरा । अहमहमिगाइ टुक्का, नंदै सेट्टि पडियरेउं ॥ १५२ ॥ एगे वमणविरेयण-उव्वट्टण सेयणाइँ कुव्वंति । अवरे कट्ठतिवखाई, ओसहनियरे पति ॥ १५३ ॥ सव्वो वि सयणवग्गो, अइउबिग्गो भमेइ रत्तिदिण । आराहिज्जति तहिं च, खित्तगुत्ताइदेवीओ ॥ १५४ ॥ गिन्हिज्जति य विविहा, अभिग्गहा तक्कुडंबलोएण । पुच्छिज्जति य बहवे, जोइसिया गहबलाईयं ॥ १५५ ॥ पुइज्जति गहगणा, पइखणमुत्तारणाइँ किज्जंति । इच्चाइणो अणेगे, विहिया नंदस्स उव ॥३४॥ यारा ॥ १५६ ॥ किंतु न केणवि जाओ, लेस पि हु तस्स रोगउवसामो । किं कम्मजणियवाहीण, होइ दव्वोसहेहिँ गुणो SUSTUS
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy