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________________ धर्मविधि ॥३२॥ मकरणम् 4 % A लिकए तं जणं विडंबंति । निचं नवनवरीईइ, जीइलोओ न लज्जेइ ॥ ७३ ॥ तो केवि जणा तेसि, निम्विन्ना नासिऊण धीरमणा । चडिउं विवेयसेले, विसति चारित्तनिवनयरे ॥ ७४ ॥ तो चारित्तनरिंदो, ते रक्खइ सरणमागए लोए । जुग्गत्तपमाणेण य, अप्पेई वासठाणाणि ।। ७५ ॥ तस्त य बहवे सुरलोग-पाडया संति जेसु पुन्नधणं । विलसिजई सुक्खणं, जिएण कालं कियंत पि ॥ ७६ ॥ पुवज्जियंमि भुत्ते, पुन्नधणे तत्थ लब्भइ न वासो । अहिणवउप्पत्ती पुण, न होइ ठाणप्पभावेण |॥ ७७ तत्थवि भमंति बहवे, मोहभडा तेहिं तुटपुन्नधणा । वीसासिऊग पुणरवि, वचक्कपुरंमि निजति ॥७८ ॥ तत्थ गया | जे मूढा, कयत्थण ते पुणो वि पावंति । जे धीरा ते नासिय, तहेव चारित्तनिवमिति ॥ ७९ ॥ तो चारित्तनियो वि हु, आगम जोइसियक्यणओ तेसिं । सम्भावमविहडं जाणि-ऊण तं खिवइ सिद्धिपुरे ॥ ८॥ सा पुण विवेयगिरिणा, उवरिमचूलाइ अन्थि सिद्धिपुरी । जीए पत्तो जीवो,खणेण अखओ हवइ सिद्धो ॥८॥ जत्थ य न जरामरण, न रोगसोगा न ईसर दरिदं । नवि संजोगविओगा, न सामिदासा न छुहतन्हा ॥ ८२ ॥ इच्चाई अन्नपि हु, न जत्थ दुहठाणकारणं किंपि । किंतु सया सुक्खामय-कुंडे निबुड्डो जिओ तत्थ ॥ ८३ ॥ सा पुण चारित्तमहा-निवस्स भूपीइ अत्यि आसन्ना । किंतु न सक्कइ गंतुं, तीइ जणो दुरगमतेण ॥ ८४ ॥ वरकेवलनाणभिहो, अक्खलियगई समथि एग नरो । जस्स न किं पि दुगम्म, लोयालोयं पि सो भमइ ॥ ८५ ॥ सो सिद्धिपुरीमग्गे, सयावि वोलावए जणं भव्वं । तेण विणा तं नयरिं, न हि को वि गओ न गच्छेही ।। ८६ ॥ तास य चारित्तनरेसरेण, सह अस्थि परममित्तत्तं । सो वि इमं पुण जाणइ. कस्सवि एमो न पहडेइ ।। ८७ ।। तो जे सब्भावाओ, अविहडचित्तेण सरणमल्लीणा । सो ते नियमित्तेणं, वोलाविय खिवइ सिद्धिपुरे ॥ ८८॥ तत्थ गया ते चलिउं, न इति जं सासयं सुई पत्ता । तेसि पन्चावित्ती, नोऽणताणतकालेवि ॥ ८९ ॥ जे जीवा पुण सम्म, तं नो सेवंति ते जहाजुग्गं । 18 5 * * *
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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