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________________ R तुल्ले गणइ पियरे वि ॥ ५५ ॥ बीया य सञ्चभासा, सया वि नियतापिपासकयवासा । जा जलणविसहराई, थंभेई | मंतसत्ति व्व ॥ ५६ ॥ तस्स गिहे पूइजइ, भावगनामा समावि कुलदेवी । जातेण तचलेग य, समं भाती कुणइ रक्खं ।।५।। चारित्तरायतवभड-पमुहा सव्वे वि तं च झायति । तज्झाणपभावेण य, हति सफला सयारम्भा ।। ५८ ॥ अह चारित्तनिवरस य, लहुभाया तत्थ अस्थि गिहिवम्मो । सो रजकज्जअखनो, न लेइ दिनं पि कुनर ॥ ५९ ॥ तत्तो सो पुरतीरे, पल्लिं | काऊण धम्मसद्धं ति । नियपरिगहं गहेर्ड, रहिमो नियभाउआणाए ॥ ६० । कारावइ किसिकम्म, दाणमई तस्स कम्मठाणीओ । सत्तसु खित्तेसु सया, लाहकए ववइ बीयाई ॥ ६१ ॥ एवं ठिओ वि चायं, पभावणा भट्टिणीइ सो देइ । तेण पसिद्धिं पत्तो, पसिद्धिमूलं जओ चाओ ॥ ६२ । सो मोहनरिंदस्स वि, किमि कर देइ बंधुपच्छन्नं । नवरं असच्चसंधो, सो तेण वि सह कुणइ वेरं ॥ ६३ ॥ पेसइ ते नियसुहडे, पल्लीए तीइ बंदिगहणकए । आगंतुणं ते वि हु, छ लेग गिन्हंति बंदाई ॥ ६४ ॥ तत्तो गुरुवएसो, आरक्खो ताण धावए पिट्टि । बंदाणं मोयावण-कए तो ते वि जुझंति ॥६५॥ तो चारित्तनरिंदो, पडिग्गहं तलवरस्स पेसेइ । तेण य ते मोहभडा, ताडिती अणाहन ॥ ६६ ॥ तत्तो मोहनियो तं, मणे धरंतो विसेसओ वयरं । चारित्तनरिंदस्स वि, बंदाई गिन्हइ कयावि ॥ ६७ ॥ अह गिन्हिऊण ताई, खिवेइ विउलासु नरयगुत्तीसु । जासु न सक्कइ गंतु, सयावि चारित्तनरनाहो ॥ ६८ ॥ नियनयरवासिलोय, सो मोहो तासु निक्खिवइ किंपि । तं पि कयत्थइ बहुहा, जं केली एरिसा तस्स ॥६९ ॥ नाणावरणाईओ, तब्बंधुजगो तहा परियगो वि । जंतुकयत्थणकीलाइ, मन्नए सुहियमप्पाणं | ॥ ७० ॥ कम्म परिणामनिवई वि, एरिसं पिक्खिऊण सुयचरियं । होइ मणे संतुट्टो, दुट्ठाण एरिसा पगई ॥ ७१ ॥ नवरं सो अणुकूलो, जइ होइ जियाण तक्खणेणावि । पुत्ताइए निवारइ, जं ते विरपति पहुभणिया ॥ ७२ ॥ भवचक्कपुरत्यपि हु, के AGARH
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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