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________________ UCRECG मट्टियमिव खिविय भूमीए ॥ १२९ ।। एवं कयथिओ वि हु, स महप्पा परमझाणमल्लीणो । तं वेयण मणागवि, न गणेई वजकाउच ॥१३०॥ चिंतइ य सो नियमणे, संपइ जई खंडियं वयं मज्झ । ता कि अखंडिएण, पिंडेणं पोसिएण चिरं ॥१३१॥ रे जीव ! सहसु संपइ, सवसा हिययंमि खेयमधरंतो । अवसो सहेसि बहुयं पि, न हु गुणो को वि तुह तत्थ ॥ १३२ ॥ इय |8| | झाणलीणहिययं, तं खोहेउं सुरो असको सो । मुत्तूण हथिरूवं, विलक्खहियओ हवइ सप्पो ॥ १३३ ॥ गुंजारुणनयणजुओ, 1 चलंतजीहाकरालमुहकुहरो | वित्थरियफडाडोवो, विष्फारियफारफुक्कारो ॥ १३४ ॥ जंपइ तस्स पुरओ, सो सप्पो दप्पदुद्धरो एवं । कि रे पासंडिय ! नेव, मुंचसे अज्जवि पइन्नं ॥ १३५ ॥ इअ भणिओ वि न खुब्भइ, तो उच्छलिऊण पच्छिमद्धेण । है वेहेइ तस्स देहं, बद्धणं सगडअंगव्य ॥ १३६ ॥ तो गाढं दाढाहिं, तं सव्वंगेसु डसइ छुहिउव्व । तह उग्गिरइ मुहेण, खलुव्व 2 दुव्वयणगरलाई ॥ १३७ ॥ अह कामदेवसडो, दृढव्वओ नेव चलई झाणाओ। उवसग्गेणं इमिणा वि, तो सुरो चिंतइ मणमि | ॥ १३८ ॥ गिन्हिज्जइ पाएणं, जणे सिहंडी वि तइय उट्ठाणे । उवसग्गतिरोणावि हु, एस मए चालिओ न पुणो ॥ १३९ ॥ तो रंजिओ स देवो, निम्मलसत्तेण कामदेवस्स । काऊण दिव्वरूवं, पुरओ होऊण तं भणई ॥ १४० ॥ धन्नो तुमं महप्पा !, | कयकिच्चो अमलसत्तगुणकलिओ। तुह सहलं मणुयत्तं, सलहिज्जइ जीवियं च तहा ॥ १४१ ॥ निग्गथे पावयणे, इमम्मि जं 6 एरिसं तुह दढत्तं । ता नूणं तुह (न हि)दूरे, रिद्धी सग्गापवग्गाण॥१४२॥ अह तं सक्कपसंसं,असदहाणं च अप्पणो कहिउँ । चरणेसु तस्स निवडिय-तं खामइ तिगरणविसुद्धो ॥१४३॥ भणइ य देवाणुप्पिय !, सुपरिक्खियसत्तसद्दहा वि मए । तुह सको वि न सक्को, पारं लहिउँ किमन्नयरो ॥१४४॥ एवं पुणो पुणो वि हु संथविओ(5) पणमिउं च भत्तीए । तं चिय मणे धरंगो, सट्टाणं RECRUCIRHARECR
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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