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धर्मविधि ॥ २५॥
प्रकरणम
जोइसिया ९ । नमिऊण जिणं विहिणा, वायव्ये ठंति दिसिभाए ॥४४॥ पविसित उत्तराए, वेमाणिया १० माणुसा ११ तहित्थीओ १२। विहिणा बंदिय सामि, ईसाणे ठंति पंजलिया ॥४५॥ अन्नुन्नमुक्ककोवा, बीए पायारअंतरे तिरिया । तइयंमि विविहजाणा, नरिंदपभिईण चिट्ठति ॥ ४६॥ अह नियनियठाणेसु, तत्थ निसन्माण बारपरिसाण । जोडियकरकमलाण, आलिहियाणं व चित्तंमि ॥ ४७ ॥ निम्महियसंसयाए, जोयणनीहारिणीइ वाणीए । भयवं सिरिवीरजिणो, धम्मकहं कहिउभाढत्तो ॥ ४८ ॥ अह सयलसंसयहरं, समोसढं जाणिऊण वीरजिणं । पहुपायवंदणकए, संचलिओ कामदेवो वि ॥४९॥ तइया रहाइएहिं, जाओ जाणेहि दुग्गमो मग्गो । पच्छाइयं च गयण, अब्भेहि व सुरविमाणेहिं ॥ ५० ॥ तत्तो कहमवि पत्तो, स गिही मज्झमि समवसरणस्स । दटूण पहुं जाओ, अणमिसनयणो सुरगणुव्व ॥५१॥ अह दाऊण पयाहिण-तिगं परं | विम्हयं वहतो सो । वंदित्तु वीरनाहं, उवविट्ठो बद्ध पंजलिओ ॥ ५२ ॥ सुरनरतिरिक्खसाहा-रणाइ जलवाहगजिगुहिराए । जिणवाणीए धम्म,कहिज्जमाण सुणइ एवं ॥५३॥ भो ! भो ! (चुलसी) जोणीलक्खे,परिब्भमंता लहेवि मणुयत्तं । जे नायरंति धम्म, ते जीवा अप्पणो अहिया ॥ ५४॥ जेणणुसमयं अंजलि-परिकलियजलं व गलइ इह जीयं । अरिणुच्च जराईया, रोगा मंति तह देहं ॥ ५५ ।। अइबहुयकिलेससमज्जियावि, अइवल्लहावि जीयं व । लच्छी खणेण वच्चइ, कुसीलमहिलव्य अन्नत्थ ॥ ५६ ॥ पियमाइमित्तसुकलत्त-सयणाइओ वि संजोगो। खणदिट्टनट्टविहवी, जलनिहिकल्लोलपंतिव्व ।। ५७ ॥ जुन्यणमथिरं पामाकंड्यणसुहसमा इमे विसया । ता तिजए वि न किंचि वि, सारं धम्मं विमुत्तण ॥ ५८ ॥ तो तिजयगुरू सम्मं, धम्म समणाण सावयाण च । साहइ जहाविहीए, सवित्थरं तत्थ सव्वेसि ॥ ५९ ॥ तं देसणं सुणित्ता, केवि हु सत्थाहसिट्टिपभिईया । पडिबुद्धा पहुपासे, तइया गिन्हंति पव्वजं ॥ ६० ॥ तिसिउच्च कामदेवो, सामियवयणामियं पिएऊण । सव्वंगं रोमंचं, समय
॥ ५४॥
अइवल्लहावि जायलनिहिकलोलपात
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