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________________ SHREE धर्मविधिला जुवरायपए,आभीई कुमर(केसि)भनीए ॥३६॥ इय नियमणंमि चिंतिय,उदायणो तक्खणेण नियठाणे । ठवेइ भायणिज्ज,सुयंमि Sमकरणम ॥२२॥ संते वि रजखमे ॥ ३६२ ॥ सामंतमंतिपमुहे, सव्वे वि जहटिईइ ठविऊण । दाणं दाउं चलिओ, वयगहणत्थं महिडीए ॥३६३॥ गंतूण समवसरणे, विहिणा सिरिवीरपउमहत्थेण । पडिवज्जइ पच्वज्ज, उदायणो चरमरायरिसी ॥ ३६४ ॥ तत्तो जिणआणाए, पासंमि सुहम्मसामिणो स मुणी। गहणासेवणरूवं, सिक्खं विणएण गिन्हेइ ॥ ३६५ ॥ इक्कारस अंगाई, 'अप्पदिणेहिं पि पढइ स महप्पा । तो सुत्तत्थविहिन्नू , कमेण जाओ स गीयत्थो ॥ ३६६ ॥ अह इकल्लविहारं, पडिवन्नो सामिणा अणुन्नाओ । उच्चरिए इव अंतर-रिऊ जिणतो भमइ पुहविं ॥ ३६७ ॥ नियतणुणो निरवेक्खे, मातवा दुत्तवे वि तवइ तवे । सो रायरिसी सम्म, परीसहे सहइ दुसहे वि ॥३६८॥ अह आभीइकुमारो, रज्जे ठवियंमि केसिकुमरंमि । चिंतइ जिट्ठसुओ हं, पभावईकुक्खिसंभूओ ॥३६९॥ ता रज्जसामिणो मे, सव्वत्थ खमस्स नीइमइणो वि । नो दिन्नमजोगस्स व, तारण कमागयं रज्जं ॥३७॥ जामेओ वि हु एसो, केसी पुण ठाविओ सरजमि । ता कि मज्झ पराभव-जणगाइ इमस्स सेवाए ॥ ३७१ ॥ इय माणस दुवखेणं, अभिभूओ आगओ स चंपाए । मासियसुयस्स कोणिय-निवस्स पासंमि रहिओ य ॥ ३७२ ॥ मुणिणो उदायणस्स वि, वाही दुट्टो अहन्नया जाओ । सो खिज्जइ तेण बहुं, चंदो इव कसिणपक्खंमि ॥ ३७३ ॥ जाणतो वि सरोगं, अप्पाणं देहनिम्ममो स मुणी । दंसेई न विजाणं, न करेइ य ओसह किंपि ॥ ३७४ ॥ अह अन्नया सरोगं, तं पिक्खिय कोवि जंपए विज्जो । भयवं ! तुह रोगेणं, दीसड़ देहो ससल्लुव्य ॥ ३७५ ॥ भणइ मुणी इह देहे, किं अन्नं अत्थि भो महाभाग ! । रोगमइ च्चिय देहो, देहीणं ज सकम्माणं ॥३७६॥ विज्जो जंपई पढम, देह चिय धम्मसाहणं मुणिणो। ता तुममवि धम्मत्थी, १ थोवदिणेहिं, प्रत्यन्तरे । ॐ॥२२।। MARROCESALESALMACARE
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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