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धर्मविधि ॥२०॥
यो निवई । पुत्रं कयसंकेयं, सुमरेइ पभावईदेवं ॥ २९२ ॥ सो सुमरियमत्तो वि हु, संपत्तो सिद्धचेडउ व्व तया । पुच्छर समरणकज्ज, अह आह निवो जलाभावं ॥ २९३ ॥ तत्तो सुरो विउच्चर, सजलाई तत्थ तिन्नि कुंडाई | अग्गिममज्झिमपच्छिमवाण जलपाणजुगाई ॥ २९४ ॥ मज्जणपाणाईयं कुव्वतो तज्जलेण सिन्नजणो । अमयरससिंचिओ इव, सब्बो उज्जीविओ तइया || २९५ ।। संपत्ताइ पसिद्धिं, तिपुक्खराई ति ताइँ कुंडाईं । नीरस्स निहाणाणि व, अज्जवि चिट्ठति तह चैव ।। २९६ ।। इय सिन्नस्सासासण - मणुट्टिओ सो पभावईदेवो । नरवइणाणुन्नाओ, संपत्तो निययकप्पंमि ॥ २९७ ॥ अह सो उदायणनिवो, महाबलो दुग्गसंठियनरिंदे । आणापरे कुणतो, मालवदेसंमि संपत्तो ॥ २९८ ॥ तं आसन्नं सिन्नं, नाऊण निवोवि चंडपज्जोओ | चउरंगबलसमेओ, संमुहमावासिओ झति ॥ २९९ ॥ अह निहंकियदियहे, ते दोवि विवायणुव्व रायकुले । समरंगणंमि दुक्का, नियनियपक्खेण परियरिया || ३०० || अह उभओ पासेसुं, उच्छलिओ समरतूरनिग्घोसो । अट्टा दुन्निवि, बलाइँ जयलच्छिलद्धाई ॥ ३०९ ॥ करिणो करिहिं तुरगा, तुरंगमेहिं रही हि रहिणो य । सुहडा सुहडेहि तया, समगं चि तत्थ जुज्झति ॥ ३०२ ॥ इत्थंतरे उदायण - निवो विचितित्तु बहुजणाण रवयं । करुणाए पभणाव, इय दूमुहेण पज्जयं ॥ ३०३ ॥ निव ! एसो निहूसण- जणवखओ मज्झ तुज्झ य विरोहे । रयगस्स आउयरवए, रासहमच्चुव्व न हु जुत्तो । ३०४ ॥ तम्हा निव ! इकंगा, सुहडेहिं परिमिएहिँ जुत्ता वा । आरूढा वा तुलट्ठिईइ वयमेव जुज्झामो || ३०५ || तो पज्जोओ जंपइ, रहवरचडियाण होउ संगामो । पहसमए अम्हाणं, अह तं दूओ कहइ पहुणो ।। ३०६ || तत्तो उदायणनिवो, संनहिउँ रहवरंमि आरूढो । पयडपयावो पत्तो, पहसमए गिम्हवणुव्व ॥ ३०७ ॥ रहआरूढेण मए, नूणमजेओ उदायो रहिओ । इय अनलगिरिकप्पिय-रहचडिओ एइ पज्जोओ || ३०८ || दहूण गयारूढं, पज्जोयमुदायणो भणइ पात्र ! |
प्रकरणम्
॥२०॥