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________________ धविधिका नृणं निसाइ पचो, केणवि कज्जेण चंडपज्जोओ । इय निच्छिय ते रन्नो, कहंति तं वइयरं जाव ॥ २५९ ॥ ता केणवि प्रकरणम् ॥१९॥ विनतं, देव ! न दीसइ सुवन्नगुलिय त्ति । तो नायं पज्जोओ, निसाइ धित्तुं गओ दासि ॥२६०॥ अह भणइ निवो पिक्खह, किं पडिमा अस्थि जिणगिहे तत्तो । अत्थि त्ति विलोएउं, कहियंमि निवो ठिओ तुटो ॥२६१ ॥ तो अच्चणवेलाए, मिलाणपुप्फ उदायणो पडिमं । पिक्खइ अदिट्ठपुच्वं, नलिणि हिमदद्धकमलं व ॥ २६२ ॥ अह निम्मल्लं उत्ता-रिऊण पडिमं निरिक्खए जाव । ता न हवइ सा. एस त्ति, निच्छिउं चिंतए राया ॥ २६३ ॥ सो पावो पज्जोओ, मह पडिमं तकरुव्व हरिऊण । कत्थ टू | गमिस्सइ इन्हि, रविणो नट्टा सियालिव्व ॥ २६४ ॥ अह अत्थाणे पत्तो, पज्जोयनिवस्स अप्पए दूयं । गंतूण तत्थ सो वि हु, नियपहुसिक्खाइ इय भणइ ॥ २६५ ॥ नरवर ! दासीहरणं, नो जुज्जइ दुट्टचिट्ठियं एयं । चंदस्सेव कलंक, होही तुह निम्मलस्सावि ॥ २६६ ॥ लब्भइ नरिंदकन्ना वि, पत्थिया किन्न किंकरी एसा । ता कह निरत्थयमिम, नियमत्थयढंक्कणं कुणसि ॥ २६७ ॥ नियसत्तीए इ8, पिक्खंताणं परेसि गहियव्वं । तयभावे तस्स कए, भत्तीए परं पसाइजा ॥ २६८ ॥ एवं तु चोरियाए, नरिंद ! मच्चू खलीकओ तुमए । खित्तो करो अहिमुहे, सुत्तो उट्ठाविओ सिंहो ॥२६९॥ अहवा भग्गखएणं, जाणतो वि हु विमुज्झई लोओ । ता एगं तुह खलियं, खमियं दिन्ना मए दासी ॥ २७० ।। एयं पुण जिणपडिमं, अप्पसु जइ जीविएण तुह कज्ज । अहवा भणसि न कहियं, रणसज्जो होसु अचिरेण ॥ २७१ ।। अह जंपइ पज्जोओ, रे दूय ! मुणेइ किं न तव सामी । पिउदिन्नपि हु रज्ज, मत्थयसुन्नाण जं जाइ ॥ २७२ ॥ तो भणियं दृएणं, वक्खित्ते गिहजणंमि जइ सुणओ। किंचिवि गिन्हिय गच्छइ, ता कि निव ! पोरिसं तस्स ॥ २७३ ।। बलिएहिं वि चोरेहि, गहियं वालंति जे परकमिणो । किं रावगेण हरिया, सीया रामेण नाणीया ॥ २७४ । इय आयन्निय कुद्धो, पज्जोओ निपनरे निरोरुवेइ । भो ! भो ! दुम्मम्मुह IMGSURESSURCHASE KOCHECRECARECRUCIRCRAICH C॥१९॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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