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________________ गुडियाओ || २४१ || दियसमत्यतित्यो य, सो तओ सुगुरुपायमूर्लमि । पडिवज्जियपव्वज्जं, कयतवचरणो गओ सुग ॥ २४२ ॥ अह सा खुज्जा रूवं, कामेउं भक्खई गुडियमेगं । तो जाया दिव्वत, खणेण वेउव्वस्वव्व ॥ २४३ ॥ तं ह सुवन्नवन्नं, सुवन्नचालियं व तं दहुं । जंपेइ जणो सव्वो, सुवन्नगुडिय त्ति नामेण ॥ २४४ ॥ सा चितइ मम रूवं, विहलं जइ पिययमो न अणुरूवो | ता मह को हुज्ज पई, रईइ मयणुव्व समस्वो || २४५ ।। एसो ताव उदायण-राया मह होइ तायपडिरूवो । अवरे य करिसगा इव, इमस्स करदाइणो सव्वे ॥ २४६ ॥ ता मालवदेसपई, मज्झ पई होउ चंडपज्जोओ । इय कामिऊण गुडियं, बीयं भक्खेइ सा दासी ॥ २४७ ॥ अह गुडिया हिडाइणि- देवी गंतूण तत्थ तइयावि । वन्नइ सुन्नगुडिया-रूवं पज्जोय निवपुरओ || २४८ || सो पुण इत्थीलोलो, पेसर तक्कालमेव नियदूयं । सो गंतूण तीसे, कहेइ पज्जोयअणुरायं ॥ २४९ ॥ सा आह तुज्झ पहुणो, चिट्ठा जइ मज्झ उवरि अणुराओ । ता किं न सयं पत्तो, केयं पिम्म निठुरया ॥ २५० ॥ अह दूणागंतुं तव्त्रयणे अक्खियंमि पज्जोओ । अनलगिरिहत्थिरयणा - रूढो रयणीइ तत्थ गओ ।। २५१ ॥ सामयणोवमरूवं, तं पिक्खिय रंजिया भणइ देव ! । देवाहिदेवपडिमं, इह मुत्तूणं न इस्लामि ।। २५२ || अह जंपर पज्जोओ, जइ एवं ता इमंमि ठाणंमि । ठविऊण अवरपडिमं, एयं गिन्हित्तु गच्छामो ॥ २५३ ॥ होउ इमं ति पवन्ने, सो चलिउं आगओ निए नरे । कारे तप्यमाणं, अवरं पडिमा पडिख्वं ॥ २५४ ॥ तं गिन्हिऊण पुणरवि, तहेव रयणीइ आगओ तत्थ । तीसे अप्पर पडिमं, सा पूइय उवइ तट्ठाणे ।। २५५ ।। अह पज्जोओ सिग्घं, दासि देवाहिदेवपडिमं च । हत्थिम्मि समारोत्रिय, पत्तो उज्जेणिनयरीए ॥ २५६ ॥ अह तत्थ अनलगिरिकय-मुत्तपुरीसुकडेण गंधेण । विगयमया संजाया, मुणिणुव्व गया उदयणस्स ।। २५७ ।। तं दहुं विम्हइया, जाव विलोयंति हत्थिआरोहा । ता अनलगिरिपयाई, मुत्तपुरीसे य पिक्खति ॥२५८॥ T
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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