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________________ धर्मविधि ॥१८॥ प्रकरणम् लाभो चिंतामणिस्सेव ॥ २२५ ॥ ता भो ! नरवर ! एय, सम्मं संपेहिऊण हिययंमि । सिरिसव्वन्नुपणीए, कुणसु सया उज्जम धम्मे ॥ २२६॥ इयसाहुदेसणाए, रन्नो अकसाइए वि हिययंमि । वत्थे इव उवविटो, खणेण जिणधम्मरंगो सो ॥ २२७ ॥ इय नाउं पच्चक्खो, होऊण पभावई सुरो तुरियं । जिणधम्मे कुणइ थिरं, दंसेई निययरिद्धिं च ॥ २२८ ॥ नरवर ! में सुमरिजसु, दुक्खावडिउ त्ति जंपिऊण सुरो । उपसंहरि नीसेस-देवमायं गओ जाव ॥ २२९ ॥ ताव उदायणनिवई, पिक्खइ पुव्वं व निययअत्याणे। सिंहासणोवपिंटुं, अप्पाणं विम्हिओ हियए । २३० ॥ तप्पभिई सो राया, सयावि गुरुचरणसेवणानिरओ । संजाओ जिणधम्मे, कुसलमई रज्जकज्जिव्व ॥ २३१॥ इत्तो य आसि गंधार-जणवए परमसावगो एगो। तेण जिणजम्मणाई, नमियाई सयलतित्थाई ।। २३२ ॥ अह अन्नदिणे निसुणइ, वेयड़नगे जिणिदभवणाई । तो तव्वंदणहेउ, गिन्हेइ अभिग्गहमिमं च ॥ २३३ ॥ पभणइ कओववासो, वेयढ़े चेइएहिं नमिएहिं । मह भोयणमिह जम्मे, अन्नइ सरणंपि मम | ताई ॥ २३४ ॥ तत्तो सासणदेवी, पत्ता सत्तेण रंजिया तस्स । पभणइ तव तुट्टा , अभिरुइयं मग्गसु वरं ति ॥ २३५ ॥ अह सो पभणइ सट्टो, वेयडूनगंमि मज्झ अभिरुइयं । जिणभवणवंदणं चिय, तत्थ न सकेमि पुण गंतुं ॥ २३६ ॥ तो तं नेऊण | तहिं, वंदावइ सा जिणिंदभवणाई । तुट्ठा य तस्स अप्पई, कामियगुडियाण सयमेगं ॥ २३७ ॥ अह देवीइ अदंसण-टियाइ | चिंतेइ वीरजिणपडिम । वीयभए वंदिजा, इय भक्खइ गुडियमेगं सो ॥ २३८ ॥ तो तप्पभाववसओ, सो संपत्तो खणेण वीयभए । देवाहिदेवपडिम, वंदइ परमाइ भत्तीए ॥ २३९ ॥ अह तत्थ देवदत्ता, दासी पुच्छेइ कत्थ ठाणाओ। सावय ! पत्तो सो वि हु, अक्खइ वेयडवुत्तं तं ॥ २४० ॥ तत्तो सा सकारइ, विसेसओ तं गुणडपत्तं ति । सो वि य तुट्टो तीसे, अप्पेई ताउ ॥१८॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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