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कुसरीरकुमारस पु
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मा भवे, सुहजणणं धम्मवररयणं ॥ १०१॥ दालिदं दोहरगं, कुजाइकुसरीरकुमइकुगईओ। अवमाणरोगसोगा, न हुंति जिवि
कारीणं ॥ १०२ ॥ पृइज्जइ जिणपडिमा, निच्चं भव्येहि जेहि कारविया । बड़ेइ तरस पुग्नं, कलंतरेणेव धननिवहो ॥१०३ ॥ ता इय कहिउँ फयजत्तो, पत्तो नाइलसुरो सट्टाणमि । एसोवि हु जिणधम्म, चिंतारयण घ गिन्हेइ ॥ १०४ ॥ तत्तो महहिमवंते,
गंतुं गोसीसचंदणं छित्तुं । निम्मवइ तेण पडिम, अप्पडिम वीरनाहस्स ॥ १०५ ॥ अह तखणं पइटिय, विभूसिउं पूइउं च तं पडिमं । गोसीसचंदणमए, खिवइ निहाणं व संपुडए ॥ १०६ ।। अह तं गिन्हिय चलिओ, पिक्खइ जलहिमि पवहणं एगं । आवत्तेण भमंतं, कुलालचक्कव्व गयणत्यो ॥१०७॥ पिक्खेइ तमि वहणे, सुमरंत इट्टदेवयं लोयं । भयकंपिरसव्यंग, जममुह. कुहरंमि पडियं च ॥१०८ ॥ मासछगं संजाय, एयरसावत्तमज्ज्ञपडियरस । इय ओहिणा वियाणिय, वणियजणं अपए देवो ॥ १०९ ॥ जाइस्सह कत्थ तुमे, ते वि हु जति तं सुरं दहुँ । दीणतं पगडंता, मउलीकयपाणिणो एवं ॥ ११० ॥ सामि ! समुदरसु तुमं, इमाउ आवत्तअंधकूवाओ । कुलदेवयव्य संपइ, पुन्नेहिं देव ! दिट्ठो सि ॥१११।। ता काऊण पसायं, कुणसु दयं देसु जीवियं अम्ह । पावेसु सिंधुसोवीर-मंदणं वीअभयनयरं ॥११२।। ता मा भायह मा भायह सि, भणिरो स वंतरो भणई । एसो हं तुज्झ लहुं, पामि समीहियं ठाणं ॥११३ ॥ अह सो उप्पायकर, सुरिं निवारे वि वहणनाइस्स । अप्पइ समुग्गयं तं, 13 ओसहमिव रक्खणट्ठाए ॥११४॥ भणइ इमं अप्पिज्जसु, तत्थ तुम उदयणस्स वीयभए । कहिऊण इत्थ चिटइ, पडिमा देवाहिदेवस्स ॥ ११५ ॥ इय वुत्तूण अदसण, पत्ते देवमि तप्पभावाओ । उप्पइउं तखणेणं, वीयभए पवहणं पतं ॥ ११६ ॥ उत्तरित्रं पोयाओ, पोयबई जाइ निवइअत्थाणे । तं सव्वं वुत्तंतं, सकोगं कहइ य निवस्स ॥११७ ॥ विनवइ य नरकुंजर !, सुरदिन्नसमुग्गयस्स रम्मस्स । वेलाकूलम्मि सयं, आगच्छह दसणटाए ॥ ११८ ॥ तत्तो तावसभत्तो, सो निवई तावसे पुरो काउं। १