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प्रकरणम्
धर्मविधि है। अह अन्नदिणे अट्टम-दीवे नंदीसरंमि रम्ममि । जिणचेइयजत्ताए, देवा सव्वे वि संचलिया ॥८५॥ तो सुनयारदेवो, स विज्जु- ॥१४॥
मालि त्ति नामधेएण । नाउणं जिणजत्त, हासपहासाहि इय भणिओ ॥८६॥ नंदीसरंमि सामिय ! चलिएसु सुरेसु अम्ह गीयंमि । अहिगारो अत्थि सया, तुह पडहगताडणमि पुणो ॥ ८७ ॥ तो भणइ विज्जुमाली, पडहं न खिवामि कहवि कंठमि । देवीइ पुणो भणियं, न चलइ एसा ठिई तुज्झ ।। ८८ ॥ तो तस्स गले पडहो, बलावि ओलंबिओऽभिओगि त्ति । तं वायंतो बच्चइ, उग्योसंतोव्व नियखेयं ॥८९॥ दिहो नायलदेवेण, जंपिओ पुव्वमित्तनेहेण । सो तस्स दित्ततेयं, न सहेई चक्खुरोगिव्व ॥ ९० ॥ अह तेण नियं तेयं, संहरिऊणं पयंपिओ एसो। किं भो ! ममं वियाणसि, न व त्ति सो अह पयंपेइ ॥११॥ सक्काईए देवे, तुम्भे जाणामि किंपि न य अन्नं । अह सो नागिलरूवं, दसे कहइ वुत्तं तं ।।९२॥ तं नाऊणं एसो, कुमारनंदी सुरो पयंपेइ । पच्छुत्तावपलितो, तप्पयपउमेसु पडिऊण ॥ ९३ ॥ सामि मए तइया, मित्तस्सवि तुज्झ लंघियं वयणं । तस्स फलं मह हियए, मुल्लइ पडहगमिसेण इमं ॥९४ ॥ अनाणपरवसेहिं, कीरइ अवियारिऊण जे कज्ज । तं पच्छा परिणामे, सल्लइ सल्लं व हिययंमि ॥ ९५ ॥ अवियारयमि कज्जे, सहस चिय जे नरा पयस॒ति । डझंति ते वराया, दीवसिहाए पयंगुब्ध ॥१६॥ ता नाह तुज्झ रिद्धी, दिट्ठा नायं च धम्मफलमेयं । संपइ जं करणिज्ज, गुरुच्च तं कहसु पसिऊण ॥९७|| नायलसुरेण भणियं, न हु विरई होइ भद्द ! देवाणं । ता संपइ सम्मत्तं, ('गिन्हसु जिणधम्मसव्वस्सं ॥ ९८ ॥ अरिहं देवो गुरुणो, सुसाहुणो तेहिँ भासिओ धम्मो । इय सम्मत्तं चित्ते, धरसु तुमं सिद्धमंत व ॥ ९९ ॥ अन्नं च तुमं कारसु, संपइ विहरतवीरजिणपडिमं । जेण थिर सम्मतं), तुह होइ भवंतरेवि जओ ॥ १०॥ जो कारयेइ पडिमं, जिणाण जियरागदोसमोहाणं । सो पावइ अन्न
१ (गिम्दसु, इत्यादितः जेण थिरं सम्मतं २) इति पर्यन्तं पाठः प्रत्यन्तरे म रक्ष्यते।
४॥ १४॥