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________________ CSCR धर्मविधि | सेवंति य इच्चाई, निसुए परिहारवयणमि ॥ २२६ ॥ अह सो दिन्नुवओगो, अवहिन्नाणेण पुव्वभवचरियं । एवं सुमरइ सो |मकरणम् इं, सेयवियाए पएसिनिवो ॥ २२७ ॥ जं केसिपसाएण, धम्मो सुपरिक्खिओ मए विहिओ । पत्तं तप्फलमेयं, जयइ अहो धम्ममाहप्पं ॥ २२८ ॥ इयं सुमरिऊण उट्टइ, अह पडिहारेण दिन्नवाहू सो। सिंहासणे निसन्नो, जयजयकारंमि उच्छलिए । ॥ २२९ ॥ तत्तो अभिसिंचिज्जइ, सुरेहिँ वीइज्जए य चमरेटिं। गंधव्वेहिं कलगीयाहि, गाइज्जए तत्थ ॥२३०॥ तत्तो य समुढेलं, है स सूरियाभो अनन्नभत्तीए । गंतूण जिणाययण, सासयपडिमाउ पूएई ॥२३१॥ वरनाणदीवसरिसाइँ,सो तओ पुत्थयाइँ बाएइ । छ। का पूयइ माणवयंभ-ट्ठियाणि अरहंतअट्ठीणि ॥ २३२ ॥ इच्चाइ देवकिच्चाइँ, तत्थ काऊण सूरियामसुरो । निययसहाए पत्तो, जंबु दीवं पलोएइ ॥ २३३ ॥ इत्तो य तत्थ दिट्ठो, अवहिन्नाणेण वद्धमाणजिणो । विहरतो संपत्तो, आमलकप्पाइ नयरीए ॥२३४॥ तो तव्वंदणहे, कारावइ आभिओगियसुरेहिं । तत्थ जिणसमवसरणं, काऊण ते वि साहति ॥ २३५ ॥ अह सो सब्बिड्डीए, | दिव्वविमाणमि आरुहेऊण । सामाणियाइपरियर-संजुत्तो एइ तं नयरिं ॥ २३६ ॥ तत्थ य सो ईसाणे, दिसिभाए अंबसालव8 णमज्झे । उत्तरिय विमाणाओ, संपत्तो समवसरणमि ॥२३७॥ तिपयाहिणी करेउ, विहिपुव्वं वंदए जिणं वीरं । काऊण संसयाण, ला बुच्छेयं विन्नवइ एवं ॥२३८॥ सिरिगोयमपमुहाणं, अहं मुर्णिदाण दसइस्सामि । नविचित्तयमिहि, तो तुन्हिको ठिओ सामि 18 ॥ २३९ ॥ अह सो ईसाणदिसिं, गंतुं सिंहासणमि उवविसिउं । अडहियसय खेलाण, कड्ढए दाहिणभुयाओ ॥ २४०॥ वामभुयाओ पुण तित्तियाओ, कड्ढेइ खेलियाओवि । तो दिव्वगीयवाइत्त-मणहरं विरयए नढें ॥ २४१॥ एवं अदिठपुव्वं, अभिरामं दंसिऊण नट्टविहि । सो मूरियाभदेवो, संपत्तो नियविमाणम्मि ॥२४२ ॥ तो गोयमगणनाहो, पणनिय पुच्छेइ | सामिय वीरं । भयवं ! को एस सुरो ?, कह वा रिद्धिं इमं पत्तो ? ॥ २४३॥ अह अक्खइ सिरिवीरो, सवित्थरं तस्स पुव्वभव- ६॥९॥ ASSESSAGAR A CCORMCLUCONG
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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