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________________ धर्मविधि प्रकरणम् गया निए ठाणे । इयरो वि तेहिं सद्धि, खरुव्व अइभारिओ पत्तो ॥१५४॥ अह ते तिन्निवि रयणाणि, बहुयदव्येण विकणेऊण। कारंति वरघराई, भुंजति मणुन्नमाहारं ॥ १५५ ॥ पहिरंति दिव्वदूसे, परिणति सुरूवइन्भकन्नाओ । विलसति जहिच्छाए, भमंति तह सयणपरियरिया ॥ १५६ ॥ सो लोहमारवाही, लोहं विकिणिय तेण मुल्लेण । मग्गव्वयाउ लुट्टो, भोयणचिंतादहे पडिओ ॥१५७॥ रंकु ब्व भोयणत्थी, मुणि व्व घरपरिणिबंधणविमुक्को । जीवो इव एगागी, भमेइ सव्वत्थ सो मूढो ॥१५८॥ तेसिं च रिद्धिनिवहं, पिक्खंतो सुरवराण संकासं । पच्छत्तावेण बहुं, परितप्पइ जरियदेहु व्व ॥१५९॥ एवं सो तप्पंतो, लंधतो उयरपूरणाभावे । मग्गेइ दीणवयणो, तप्पासे धन्नकवलंपि ॥१६०॥ ता लोहभारतुलं, अन्नाणत्तं चइत्तु नरनाह !। सयलसुहकारणाई, गिन्हसु नाणाइरयणाई ॥१६१॥ इय संलत्तो गुरुणा, नत्थियवाइत्तकुग्गहं मुत्तुं । संवेगसुद्धहियओ, राया विन्नत्तियं कुणइ ।। १६२ ॥ भयवं ! इत्तियकालं, विवेगविगलेण तत्तरहिएण। पसुणा इव किंपि मए, किच्चाकिच्चं न विनायं ॥१६३॥ ता काऊण पसायं, पहियपि व सुकयसंबलविमुकं । भीमभवरन्नपडियं, मं दावसु निव्वुइपहंमि ॥१६४॥ तो भणइ गुरू नरवर ! जीवो सब्यो वि अहिलसइ सुक्खं । तं कह विणा सुथम्म.पडु व्व सुत्त विणा न भवे ॥१६५।। जुत्ताजुत्तपरिक्खा-विरहे मिच्छत्तमोहिओ जीवो । धत्तरिउ व्व कणयं, सव्वत्थवि मन्नए धम्मं ॥१६६॥ तम्हा निव ! मुक्खकए, धम्मपरिक्खा सया वि कायव्वा । सा पुण जिणिदधम्म, मुत्तूण हवेइ नन्नत्थ ॥१६७॥ जिणधम्मे पुण मूलं, अरिहं देवो सुसाहुणो गुरुणो । धम्मो जिणपन्नत्तो, इय सम्पत्तं तुम मुणसु ॥ १६८ ॥ अह पाणिवहप्पमुहाई, तस्स अक्खेइ वारस वयाइं । सिरिकेसिगुरुं तत्तो, भणइ निवो सुद्धहि यएण ॥ १६९ ॥ अरिहं देवो गुरुणो, साहू तत्तं जिणेहिँ पन्नत्तं । पडिवन्नं तह चत्तं, मिच्छत्तं सव्वहा वि मए ॥१७०॥ ४ अह अइयारवियारं, सम्मं नाऊण तत्थ नरनाहो । पाणिवहप्पमुहाई, गिन्हेई वारस वयाइं ॥१७१।। तो भणई निवो चित्तं, अमच! ॥७॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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