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________________ GULARAMMARCHECRUGRESS तत्तो दव्योवज्जणकज्जे, देसंतरंमि ते चलिया । वच्चंतेहिं कत्थ वि, दिट्टो लोहागरो गरुओ॥१३८॥ तो चिंतियमेएहि, लोहं चित्तूण अन्नदेसेसु । गच्छामो जे अग्धं, लहिस्सई वरिसयालंमि ॥१३९॥ तो नियनियसीसेहि, वहिउं सकंति जित्तियं लोहं । लोहेण तित्तियं ते, गंतुं चलिया भरुकंता ॥१४०॥ रुप्पागरंमि पत्ता, रुप्प गिन्हति विकिणियलोहं । इक्को पुण तंलोहं, न छड्डए धरियमइमोहो ॥ १४१ ॥ इयरेहि गाहिओ सो, भणेइ अणवटिया अहो तुम्मे । न चइस्सामि अहं पुण, चिरपरिवूढं इमं लोह।।१४२॥ पुरओ गएहिं पत्तो, कत्थवि कणयागरो तओ रुप्पं । विक्कीय लिंति कणयं, तिन्नि चउत्थो य उवहसइ ॥ १४३ ॥ भो भोऽण- वडियमणा, तुब्भे अन्नुन्नगाहिणो चवला । कीस मुहा परितप्पह ? बालयकीलं कुणत व ॥१४४ ॥ कुगुरूवएसमिव तं, अवमनिय अग्गओ गया जाव । ता आसन्नो निसुओ, कत्थ वि रयणागरो तेहिं ॥ १४५ ॥ तत्थ य निवआइटो, होइ दसंसो | नराण खणगाणं । सेसे पुण नवभागे, रायनिउत्ता नरा लिंति ॥ १४६ ॥ इय नाउं तं कणयं, विक्किणिउ संबलं च काऊणं । तत्थागरंमि गंतुं, रयणाई खणिउमारद्धा ॥ १४७ ॥ भणिओ य लोहवाही, मित्तत्ताओ अणेगजुत्तीहि । रयणाइँ गिन्ह अज्जवि, बयराण न पडियं कि पि ॥ १४८ ॥ इहरा घरमणुपत्तो, झूरसि दारिदमिओ बहुयं । इय भणिओ विन मन्नइ, अउन्नयाणं | 'कओ बुद्धी ॥ १४९॥ भणइ न अपइट्ठो हं, तुब्भे इव नवनवेसु चलचित्तो। किं पि न मुंचामि न वा, गिन्हामि विणा इमं लोहं ॥१५० ॥ तुब्भे धूलीमिलिया, पलोभिणो इत्थ अच्छह मरंता । उस्सीसयकयलोहो, सुहसुत्तो हं तु पिक्खिस्सं ॥१५१॥ अहद जा गहिले इव तंमि य, तडिडिए लहिय लक्खमुल्लाई । रयणाई पंच पंच य, तिन्नि वि मंतयंति इमं ॥१५२।। किं ताइ सिरीइ सुधी- * वराइ, जा होइ अन्नदेसंमि । जा न वि मित्तेहिं समं, जं च अमित्ता न पिक्खंति॥१५३॥ ता जामो नियदेस, इय मंतिय आ १ कुणउ प्रत्यन्तरे. RECECULOUDSEX
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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