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________________ धर्मविधि ॥ ६ ॥ 1 य, आगच्छंती सुरा इहईं ॥ २१ ॥ जह उभडसिंगारो, कयदिव्यविलेवणो नरो कोइ । नो जाइ असुइठाणे, तह इत्थ न इति देवा वि ॥ २२ ॥ पत्तो न तुद्द पिया पुण, वेयंतो नरयवेयणं दुसहं । परमाहम्मियधरिओ, न लहइ जं इत्थ आगंतु ॥ २३ ॥ नरवर ! नरए घोरे, नेरइया निच्चकालदुक्खत्ता । न लहंति सुक्खलेसं पि, पुव्वकम्माणुभावेण ॥ २४ ॥ छेयणभेयणकत्तणकुंभीपागाइवेयणक्कंता । इडिखित्तमणुस्सा इव, गंतुं न लहंति अन्नत्थ ॥ २५ ॥ जह कोई सावराहो, धरिओ आरक्खिएहि निग्गहिउँ । न लहइ सयणे दहूं, तह नेरइओ इहागंतुं ॥ २६ ॥ ता एयं नाऊणं, नरवर ! जीवाण सग्गनश्यठिई | धमाधमखणं, क्व पि मुणेसु मा मुज्झ ॥ २७ ॥ इय आयन्निय राया, फुरंतरोमंचकंचुइज्जतो । मउलीकयकरकमलो, भत्ती विनवे गुरुं ॥ २८ ॥ भय ! मोहपिसाओ, अज्जेव महावलो वि मह नहो । मंतेण मंतियस्स व, वाणीए ताडिओ तुज्झ ॥ २९ ॥ पहु अभंतरनयणाई, मज्झ अन्नाणतिमिरभरियाई । उग्घाडियाइँ देसण - पीऊसंजणसलागाए ॥ ३० ॥ नायं च संपयं पहु, जिणत्रम्माओ परो न धम्मुत्ति । तेयनिही जह नन्नो, आइचाओ जए पयडो ॥ ३१ ॥ नवरं नत्थियवाइ-तणमम्हाणं कमेण संपत्तं । ता कह मुंचामि अह, सामिय लज्जिज्जइ जणे वि ॥ ३२ ॥ जंपेइ गणहरिंदो नरनाह ! परंपरेण पत्तं पि । दारिद्दकुट्टमुक्ख-ताई नरो कि न मुंचेइ ॥ ३३ एसो पिऊणा कुवो, खणाविओ इय मईइ तस्सेव । खारं पि जलं केई, पिबंति मूढा न सविवेया ॥ ३४ ॥ एयंमि य पत्थावे, जइ जिणधम्मं पवज्जसे न तुमं । ता लोहभारवाहगनरुव्व परितप्यसे पच्छा ॥। ३५ ।। आह निवो को भयवं स लोहभारव्वदो नरो कहसु । अह अक्खड़ केसिगुरू, नरवर ! निसुणेसु उवउत्तो ||३६|| नयरीइ कोसलाए, पुरिसा चत्तारि निद्धणा घणियं । समदुक्खदुक्खिया इव, कुणंति मित्तत्तमन्नुन्नं ॥३७॥ प्रकरणम्. ॥ ६॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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