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________________ ए भणियं वमिआसी वच्छ ? निंदिओ होसि । ता पज्जत्तं एएण, कम्मणा गरिहणीरण ॥ ३१२ ॥ तं सोउं भदेवो, जंप हे बहु ? वमियआहारं । मुंजतो होसि तुमं, निक्किट्ठो कुक्कराओ वि ॥ ३१३ || तो नागिलाइ भणियं, जइ एयं मुणसि जंपसे इ तुमं । ता कह मामुज्झित्ता, पुणो वि उवभुतुमीहेसि ॥ ३२४ ॥ मंसद्विरुहिरमज्जा-मुत पुरीसेहिं'पूरियं अहमं । किं वंताओ अहियं, मं इच्छन्तो न लज्जेसि ॥ ३९५ ॥ का तेर्सि पुंगणणा, जे परसिक्खावियक्खणा भछ ? | जे अप्पाणं सिक्खति, ते नरा इह गणिज्जन्ति ॥ ३१६ || आह मुणी भवदेवो, साहु तए साविए मुसिक्खविओ । पहिउब उप्पहम्मी, लग्गो वि हु पग्गमाणीओ ।। ३१७ ॥ ता मिलिडं सयणाणं, वञ्चिस्से हं गुरूण पासम्मि । वयअइयारं आलो-इऊण सुतव करिस्सामि ॥ ३१८ ॥ अह नागिलाइ भणियं, किं ते सयणेहि लग्गतु सकज्जे । जेण तुह मुत्तिमंवा, ते विग्धा दंसणे गुरुणो ॥ ३१९ ॥ ता गच्छ गुरुसगासे, दंतो होऊण धरसु वयममलं । गिहिस्सामि अहं पि हु, वयमा साहुणीपासे ।। ३२० ।। तो भवदेवो जिणवेइवाइँ, वन्दित्त मणसमाहीए । पत्तो गुरुपासे कुणइ, किञ्चमालोयणाईयं ।। ३२१ ॥ अह अइयारविरहियं, सामण्णं पालिजनं भवदेवी । कयकालो सोहम्मे, जाओ देवो सुरिंदसमो ॥ ३२२|| 'इत्तो भवदत्तस्स यः, जीवो विऊण पढमकपाओ । विजयम्मिः पुक्खलोवइ-नामम्मि महाविदेहे ॥ ३२३ ॥ पुंडरीकणि नामाए, नयरीए वज्जवत्तच क्फिस्स । देवीइ जसोहरना- मियाइ कुक्खिम्मि अवयरिभो ॥ ३२४ ॥ गन्धत्रसेणं देवी, hreat जलहिज्जणे जाओ। तो जलहितुलसीया - नईइ कीलाविया रना ॥ ३२५ ॥ संपुण्णदोहला सा, अहियं वल्ली व धरइ लायण्णं । पुण्णे समए य सुम्धं, पसवइ पुव्वेव रविविवं ॥ ३२६ ॥ अह तस्स सुहमुहुत्ते, देवीए दोहलाणुसा 25%
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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