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________________ विरए सिरिवद्धमाणसामिम्मि । पिक्वे नहयमी, नराहिवो देवसंग ॥ २१७ ॥ तं दद्दूगं पुच्छ, कथंजली सेणियो जिगवरिंदं । सामिय ! किमेस दीसर, गयणयले देवसंपाओ || २१८ || भगइ जिगो उप्पन्नं, केवलनागं पसन्नचंदस्स । तो केवलिमहिमकर, नरवर ! देवा इमे ईति ।। २१९ ।। पुणरवि सेणियराओ, जिणरायं वंदिऊण पुच्छे । भयत्रं ! केवलनाणं भविस्सइ कत्थ वुच्छेयं ॥ २२० ॥ सामी वि भगइ पिक्खसु, चउदेवीपरिगओ इमो देवो । नामेण विज्जुमाली, पंचमकपैमि इंदसमो ॥ २२१ ॥ एयदिगाओ सत्तन - दियहे चत्रिऊण तुह पुरे भावी । जंबु त्ति रिसहदत्तस्स, नंदणो केवली चरमो ॥ २२२ ॥ रन्ना भणियं आसन्न -चवणसमओ कहंपि जइ एसो । ता किं इमस्स तेओ, अक्खीणं ? अह जिणो भणइ ॥ २२३|| एगवयारसुराणं, नरवर ! पत्ते वि अंतस नयम्मि । तेयक्खयपमुहाई, हवंति न य चवणचिन्हाई ॥ २२४ ॥ तइया अगाढियसुरो, जंबुदीवाहिवो पमोएण । जंपइ उच्चसरेणं, अहो कुलं उत्तमं मज्झ || २२५|| तं वयणं सोऊणं, सेणियराएण पुच्छिओ भयवं ! । कत्तो एस देवो, कुलप्पसंसं कुणइ नाइ ! || २२६ || अह भणइ वरिनाहो, नरनाह ! इममि चेव नयरम्पि । इन्भो जयविक्खाओ, जाओ नामेण गुत्तिमई ।। २२७ ।। तस्स सुया दो कमसो, संजाया रिसहदत्तजिणदासा । जिट्टो सुद्धायारो, लहुओ आइवसणी य ॥ २२८ ॥ तत्तो य रिसह इत्तेग, दुट्ठचरिओत्ति पुरजगसमक्खं । जिणदासो परिचत्तो, अहिणा दट्ठो व्व अंगुट्ठो ॥ २२९ ॥ अन्नदिगे जिगदासो, कीलंतो अन्नजयकारेग । जायम्मि जूयकलहे, निहओ सत्येण अइगाढं ॥ २३० ॥ अह ज्यविसतरुफलं तं आउहघायवेयणं दीणो । उवभुंजई जिणदासो, रंकु व्त्र महीयले पडिओ ।। २३१ ॥ अह सणा करुणा, भांति भो रिसहदत्त ! सवित्रेय ! | अणुकंपाए एयं, जीवावसु कहवि जिणदासं ॥ २३२ ॥ कितीह
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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