SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मकरण धर्मविधि ॥११॥ " * 4-ॐॐॐॐi16 वक्कल-चीरिस्स अप्पियं दविणं । हसमाणेण य भणिओ, तावसकुमरो इमं वयणं ॥ १३७॥ एयम्मि आसमपए, न हु उडवो | लन्भए विणा दविणं । ता कस्सवि दवमिम, दाऊगं आसमं किणसु ।। १३८ ।। अह रहिए ठाणगए, सो कुमरो पुरघराइ | पिक्खंतो । किं इत्थ जामि किमिहंति, चिंतगो भमइ नयरम्मि ॥१३९॥ पुरिसाणं इत्थीण य रिसिबुद्धीए स मुद्भधी कुमरो । अभिवायणवाऊलो, हसिज्जए नयरलोएण ॥ १४ ॥ अह सो पुरे भगतो, एगाए मंदिराम्म वेसाए । पविसेइ अक्खलंतो, सरु व्व कोदंडपरिमुको ॥ १४१॥ सो वेसहरं आसम-पयं ति वेसं च महरिसिं मुणइ । तो मुद्भमई एसो, पभणइ तायाभिवाएमि ॥ १४२ ॥ पत्थइ य तत्थ एवं, तं गणियं मज्झ उडवमप्पेसु । एयं विक्कयदव्वं, महरिसि ! गिण्हेसु एयति ॥ १४३ ।। तो वेसाए वुत्तं, तुह उडवो एस अप्पिओ कुमर ! । इह उवविसत्ति भणियं, आहूओ नाविओ तीए ॥१४४॥ अह वेसाएसेणं, अणिच्छमाणस्स तस्स कुमरस्स । सुप्पोवमपायनहे, उत्तारइ नाविओ तुरियं ॥ १४५ ॥ तत्तो गणिया सणियं, वक्कलचीरावमोयणं काउं । तं कुमरं ण्हाणकए, पुत्ति परिहावए सहसा ॥ १४६ ।। आजम्मं मुणिवेसो, मह एसो ताय! मा इमं गिन्ह । अह सो बक्कलवत्था-वणए बालु ब्व आरडइ ॥ १४७ ॥ तो भणियं गणियाए, महरिस ! अतिहीण आसमे अम्ह । उवयारपयं एयं, ता कह न तुमं पडिच्छेसि ? ॥ १४८ ॥ जइ अम्ह आसमाणं, नेव पडिच्छेसि एरिसायारे । तो मुणिपुत्त ! तुम इह, वसिउं न लहेसि उडवंमि ॥ १४९ ॥ तत्तो तावसकुमरो, मंताउ बसीकओ विसहरु व्व । तवासलोभवसओ, कत्थवि अंग पि न धुणेइ ॥ १५० ॥ अह तस्स केसवासं जडिलं अब्भंगिऊण तिल्लेण । गणिया सणियं सणियं, उन्नापिंडव विवरइ ॥ १५१ ॥ अब्भगिऊण तीए, मदिज्जतो स तावसो जाओ । सुहनिदाइयनयणो, ६ ॥११॥ 4-% %* **
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy