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मा सावं देउ इमो, अम्हं ति भएण सोमचंदाओ । वाहाउ मिगीओ इव, वेसाओ ताउ नट्ठाओ ॥१२१॥ अह सो वि सोमचंदे, ठाणगए आगओ चदिसंपि । अत्थं व नासियत्थो, वेसाओ ताउ पिक्खेइ ॥१२२॥ पिक्खइ रहियं चेगं, धावतो जूहभट्ठहार| व्व । तं पि रिसिं मन्नतो, पभणइ तायाभिवाएमि ॥१२३॥ अह आह रही महरिसि-कुमार ! तं कत्थ गच्छसि कहेसु ?। सो भणइ | 2 पोयणासम-गमणं इच्छामि ताय! अहं ॥ १२४ ॥ रहिणा भणियं अहमवि, समुज्जुओ पोयणासमे गंतुं। तो चलिओ तं पुरओ, काऊणं अग्गकज्ज व ॥ १२५॥ सो मग्गे वच्चंतो, रहियपियं रहवरंमि आरूढं । ताय त्ति वारवारं, वकलचीरी पयंपेइ ॥१२६॥ | अह रहियं रहियपिया, पुच्छइ तायत्ति कह इमो भणई । सो आह एस जम्हा, वसइ वणे इस्थिरहियम्मि ॥ १२७ ॥ खडिज्जते रहवर-तुरए दवण सो मुणी भणइ । वाहिज्जंति किमेए, ताय ! मिगा जुज्जइ न एवं ? ॥१२८।। तत्तो पभणइ रहिओ, हसिऊणं भद्द ! तावसकुमार! । एएसि कम्ममेयं, मियाण नो इत्थ दोसु ति ॥ १२९ ॥ अह रहिएण पहम्मी, वक्कलचीरिस्स मोयगा दिना । ते भक्खिऊण सुमरिय-पुव्यरसो भासइ इमं च ॥ १३० ॥ ताय ! मह पोयणासम-निवासिमहरिसिजणेण दिनाई । एरिस सरिसफलाई, ताई मए भक्खियाइं च ॥ १३१ ॥ इत्थंतरेण रहिओ, रुद्धो एगेण पबलचोरेण । तो अन्नन्न जुद्धं, मल्लाण व ताण संजायं ॥ १३२ ॥ तो रहिणा सो चोरो, गाढपहारेण आहओ मम्मे । चिंतइ को इह गब्बो, बलियाण वि हुंति अइबलिया ॥ १३३ ॥ अह तकरण भणियं, वन्निज्जइ वेरिणो वि घाउ त्ति । रहिय ! तए हं जित्तो, तुट्ठो ता किपि तुह देमि ॥१३४ ॥ इह अत्थि सयं खित्तं, बहुदविणं मज्झ तं तुमं गिण्ह । इय भाणए तं कड़िय, रहमि आरोवियं तेहिं ॥१३५।। तत्तो कमेण पत्तो, पोयणपुरसन्निहि भणइ रहिओ । तावस ! जो तुह इट्ठो, सो पोयणआसमो एस ॥१३६॥ अह रहिएणं किं पि हु,