SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरणम् धर्मविधि ॥१०८॥ ACCHOCOCCANCHECEO-COLORS मुणई । इय चितंतो पत्तो, आसन्नो समवसरणस्स ॥ ३८ ॥ दूराउ चिय छत्ताइ-छत्तमालोइउं पहिट्ठमणो । उम्मुक्करायचिंधो, पंचविहाभिगमसंजुत्तो ॥ ३९ ॥ ओसरणे पविसित्ता, उत्तरदिसिसंठिएण दारेण । हरिसवसवियसियच्छो, सामि तिपयाहिणेऊण ॥ ४० ॥ मणिवट्टचुंबिणामत्थएण पुणरुत्तविरइयपणामो । भालयलारोवियपाणि-पल्लवो थुणिउमाढत्तो॥४१॥ जय जय वीर जिणेसर !, विदलियमिच्छत्तभीमभवपसर ! । सुरसेवियपयपंकय :, अइसयमुत्ताहलसमुद्द!॥ ४२ ॥ इच्चाइ थुणेऊणं, गोयमपमुहे य गणहरे नमिउं। सो जोडियकरकमलो, तयणु निविट्ठो महीवी ॥ ४३ ॥ अह पत्थावे पत्ते, नमिऊणं वीरजिणवरं सिरसा । पुच्छइ सेणियराओ, पडअंचलपिहियमुहकमलो ।। ४४ ॥ सामिय! पसन्नचंदो, झाणत्यो वंदिओ मए जइया । जइ तइया विविवज्जइ, ता पावइ कं गइ एसो?॥ ४५ ॥ तो भणइ भुवणनाहो, तइया कालं करेइ जइ एसो। ता गच्छइ निभंतं, सत्तमनरयं महीनाह ! ॥ ४६॥ इय जिणवयणं सोउ, संसयपत्तो निवो विचिंतेइ । उम्गतवसोऽवि एयस्स, सामिणा का गई कहिया? ॥४७॥ तत्तो खणंतरेणं, पुणरवि पुच्छेइ सेणिओ सामि । संपइ पसनचंदो, कयकालो कत्थ गच्छेइ ? ।। ४८ ॥ अह पभणइ जिणनाहो, मगहाहिब ! एस महरिसी इण्डिं । जइ कालं कुणइ तओ, बच्चइ सव्वट्ठसिद्धिम्मि ।। ४९ ॥ तत्तो पभणइ राया, भयवं ! किं भासियं दुहा तुम्ह । मह कहसु मूढमइणो, न अन्नहा होइ जिणवाणी ॥ ५० ॥ सामी जंपइ नरवर :, स महप्पा बंदिओ तए जइया । तइया रुद्दज्झाणी, संपइ पुण सुक्कझाण त्ति ॥५१॥ रुद्दज्झाणवसाओ, सत्तमनरयारिहो तया एसो। सो सव्वसिद्धिजुग्गो, सुक्कज्झाणेण इहि तु ।। ५२ ।। तो पुच्छइ नरनाहो, महरिसिचरिएण तेण विम्हइओ। कह जायंते जुगवं, विसपीऊस व झाण दुगं ॥ ५३ ॥ आह जिणोतुह सेवग-दुग्मुहनामस्स बयणओऽणेण । नियमंतिसयासाओ, सुणिओs ॥१०८॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy