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मण, कम्मं दुज्झाणसंभवं तस्स
भिभवो नियसुयस्स ॥ ५४॥ तो सुयममत्तमइरा-तरलियरित्तो विमुक्कदिक्खु व्व | मताहि समं मणसा, स महप्पा जुज्झिउं लगो ॥५५॥ पञ्चवखेहि व सचिवाँह. तेहि अहियाहियं स जुज्यतो । मक्ख व्व सत्थरहिओ. संजाओ सो पसन्नरिसी ॥५६॥ अह कोवचलियचित्तो, इत्तो चिंतेइ मंतिणो एए । मारेमि सिरक्केण वि, सव्वं सत्थं हि बलियाणं ॥५७॥ तत्तो नियमि सीसे, वाहइ हत्थं सिरक्कगहणकए । तं गयकेसं फरिसिय, गहियवयं सरइ अप्पाणं ॥ ५८ ॥ चिंतइ मणमि घिद्धी, मं रुद्दज्झाणवधणासत्तं । किं मह तेण सुएणं, अहवा मंतीहि अममस्स ? ॥५०॥ इय चिंतंतस्स तहिं, पन्भटे मोहमेहतिमिरम्मि । पुणरवि विवे- 15 यमूरो, पाउब्भूओ हिययगयणे ॥ ६० ॥ तत्तो पुरहिए इव, अम्हे वंदित्तु सो महासत्तो । आलोइयपडिकंतो, पसत्थझाणं समा- | रूढो ॥ ६१ ॥ तेण सुहज्झाणेणं, कम्मं दुज्झाणसंभवं तस्स । झत्ति विलीणं नरवर !, पवणेणं मेहपडलं व ॥ ६२ ।। अह तस्स | रायरिसिणो, सुगइचरिएण वासिओ राया । पुच्छइ सिरिवीरजिणं, केवलसिरिकेलिकुलभवणं ॥ ६३ ।। भयवं ! बालंपि सुयं, रज्जम्मि निवेसिऊण एस सयं । जाओ पसन्नचंदो, कह दिक्खाए कयाणंदो ?॥६४ ॥ अह भणइ जिणो सेणिय !, सुणेसु चरियं | पसन्नचंदस्स । पोयणपुरम्मि नयरे, आसि निवो सोमचंदु त्ति ॥६५॥ तस्स य अणुवमगुणरयण-धारिणी धारिणी महादेवी। पुत्तो पसन्नचंदो, मुत्तो पियराण नेहु व्व ॥६६॥ अह अन्नया गवक्खे, नरवइणो संठियस्स सीसम्मि । विवरेइ केसपासं, धारिणीदेवी नियकरहिं ॥ ६७ ॥ पिक्खइ तइया एगं, पलियं सीसम्मि सोमचंदस्स । अंकूरनिग्गमं पिव, पढमं वुत्तणलयाए ॥ ६८ ॥ भणइ य देवी सहसा, सामिय ! दूओ समागओ एस । अवलोइयदिसिचक्को, भणइ निवो किं न दीसेइ ? ॥ ६९ ॥ अह गिण्हिऊण देवी, तं पलियं निवसिराओ भणइ तओ। सामिय! एसो केसो, धम्मनरिंदस्स दय त्ति ॥७०॥ तत्तो य तइय
व लसिरिकेलिकुलभवणं ।। १२
, सुणेसु चरियं
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