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________________ धर्मविधि ॥९ ॥ प्रकरणम् संसयमवणावसु इनीए ।। २४९ ॥ पभणइ सासणदेवी, जइ एवं ता रहेह पसिऊणं । मज्झ कर खगमिक, काउस्सग्गेण तुम्भेऽवि ।। २५० ॥ जेण मह कोऽवि खुद्दो, संघपभावेण कुणइ नो विग्धं । इय संघेण पबन्ने, मं गिण्डिय सा गया तत्थ ।। २५१॥ अह वैदिओ जिणिदो, मए तहिं विम्हियाग लोयाण । कहिओ जिणेण सव्वो, मह आगमणस्स वुत्तो ॥२५२ ॥ नो पुच्छिओ जिणिंदो, मए सयं संसयं नियं तत्थ । भणिओ जिणेण सिरिओ, नियआउखए दिवं पत्तो ॥ २५३ ॥ जक्खे ! तुम अदोसा, इय छिन्ने संसए जिणिदेण । संघस्स मह मुहेणं, अज्झयणचउक्कमाइ8 ।। २५४ ॥ तं एगवायणाए, जिणप्पसायाउ गिहिउं मुत्तं । पत्ता संघसमीवे, कहियं चूलाचउक्कं च ॥ २५५ ॥ तंमज्झाओ संघेण, दुन्नि दसकालियस्स अंतिल्ला । विहिया चूलादुन्नि उ, आयारंगस्स आइल्ला ॥ २५६ ।। इय ताउ तस्स सिरिथूल-भद्दमुणिणो सवित्वरं सव्वं । कहिऊण नियसरूवं, अज्जाउ गयाउ नियठाणं ॥२५७।। इत्तो य थूलभदो, उवविट्ठोजाव वायणं गहिउं । तो भद्दबाहुसामी, पयंपि नो अक्खए तस्स ॥२५८॥ सविणयमिमेण पुट्ठो, आह गुरू वच्छ ! तं अजुग्गोऽसि । अह पन्चज्जदिणाओ, नियअवराहे सरइ सोऽवि ॥ २५९ ।। तो भणइ असुमरंतो, भय ! न सरामि किंपि अवराई । भणियं गुरुणा भो तुह, बीयमजुग्गत्तणं एवं ।। २६०॥ न सरसि कल्लेऽपि कयं, इय भणिओ सो सरेवि सिंहत्तं । निवडइ गुरुचलणसं, नियअवराहं च खामेइ ॥ २६१ ॥ भणइ य पुणो न काहं, एवं जंपइ गुरू न तं कुणसि । काहति परे अन्ने, अओ न ते वायणं देमि । २६२।। कुवियं नाऊण गुरुं, संघेग भणावए भणइ सोडवि । तं पडि जंपइ सूरी, जइ एसोऽवि हु कुणइ एवं ॥ २६३ ॥ ता अन्ने पच्छिल्ला, विसेसओ एरिसाई काहति । उवरिमचउपुवाई, तम्हा चिटुंतु मह पासे ॥२६४॥ संघो निबंधेणं, जा पभणइ ताव देइ उपभोगं । नायं जह वुच्छेओ, न ममाओ किंतु ताय थूलभदो, उबविट्ठो जाव वायणगावत्पर सव्वं । कहिऊण नियसरूवं. हा सविणयमि 100
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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