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________________ धर्मविधि प्रकरणम् SCHOOLGAURANGAROOGLECRec म्मि तम्मि झाणे, कर्ज कम्मिवि कयावि संपत्ते । पुव्वाइ मुहुत्तेणं, मुत्तत्थेणं गुणिज्जंति ॥ २१७ ॥ इय तव्वयणं सोउं, कहियं संघस्स तेहि गंतूणं । पुणरवि संघेण तओ, पट्टविया तत्थ दो मुणिणो ॥ २१८ ॥ भणिया य तुमे गंतुं, पुच्छिज्जह भद्दबाहुणो पासे । संघस्स आणखंडणपराण नणु होइ को दंडो?॥२१९॥ जइ भणइ संघवज्झा, सो कीरइ ता भणिज्जह तुमेऽवि । जइ एवं ता तुम्भे, एवंविहदंडजुग्गुत्ति ॥ २२० ॥ अह ते गंतुं पुच्छंति, सोऽवि तह भणइ तेऽवि हु तहेव । तं सोउं सो जंपइ, संघो मा कुणउ अपसायं ॥ २२१ ॥ जह होइ मज्झ कज्जं, संघस्सवि तह करेउ पसिऊणं । पेसेउ मह सयासे, सीसे मेहाविणो सव्वे ॥ २२२ ॥ तेसिं वायणसत्तग- मप्पेमो तत्थ भिक्खचरियाए । पत्तो एगं अन्ना, तिन्नि उ तिसु कालवेलासु ॥ २२३ ॥ सज्झायपडिक्कमणे, विहिए अबराउ तिन्नि इय सुणिउं । ते वलिऊणं अक्खंति तं च संघोऽवि मन्नेह ॥ २२४ ॥ तो पेसइ तप्पासे, पंचसए थूलभदपमुहाणं । मेहावीणं संघो, मूरीविहु पाढए ताई ॥ २२५ ॥ अह थोववायणाए, सब्वे उन्मज्झिऊण ते मुणिणो । मुत्तूण थूलभदं, अन्ने वच्चंति वलिऊण ॥ २२६ ॥ सिरिभद्दबाहुपासे, विणयपरो थूलभद्दमेहावी । पुख्वाइँ अट्ट अट्ठहि, वरिसेहिं पढइ निन्भंतं ॥ २२७ ।। अह सूरीहि स भणिओ, तुमंपि उन्भज्जसे कहं वच्छ !। सो भणइ नेव नवरं, अइथोवा वायणा मज्झ ॥ २२८ ॥ पभणति मूरिणोऽवि हु, पुनप्पायं इमंपि मह झाणं । ता वच्छ ! घच्छसु थिरो, मणिच्छियं जेण पाढेमि ॥ २२९ ॥ पुच्छेइ थूलभदो, किं पढियं किंच थक्कए मज्झ ? | तो तस्स गुरू दंसइ, बिंदुसमुद्दाण उवमाणं ॥ २३० ॥ पुनंमि महापाणे, झाणे तो थूलभद्दमुणिणावि । वत्थुदुगेणूणाई, दस पुव्वाई अहीयाई ॥ २३१ ।। अह भदबाहुसामी, विहारकमजोगओ समायाओ । पाडलिपुत्ते नयरे, ठिओ य तवाहिरुज्जाणे ॥२३२॥ इत्तो य ताउ जक्खा-इयाउ भगिणीउ थूलभद्दस्स । SACRECTORRUAGREGORRC P॥९८॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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