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________________ धर्मविधि ॥९७॥ प्रकरणम् UC4 विविहत्तवचरणरओ, स मुणी विहरइ तहेव सुद्धप्पा । उक्कोसाऽवि हु दिना, रना तुडेण रहियस्स ॥ १८५॥ मा नवि विसिट्टरागं, तस्सुवरि कुणइ ताव रहिओऽवि । तीइ मणरंजणत्थं, निययं दंसेइ विन्नाणं ॥१८६॥ गंतुं असोगवणियं, पल्लं कत्थो धणुं परामुसिउं । आरोवियबाणेण, विंधइ अंबाण सो लुबि ।। १८७ ॥ तस्स य सरस्स पुंखे, विंधइ अनेण तिक्खबाणेण । अवरेण तस्सवि तओ, कमेण जा हत्थपप्पत्ति ।। १८८ ।। तत्तो खुरप्पबाणेण, छिदिउँ तीइ विंट सह तं च । सुत्नु च्चिय गिण्हेऊं, अप्पइ कोसाइ गविट्ठो ॥ १८९ ॥ तो तब्भावं नाउं, उक्कोसा भणइ पिक्ख विन्नाणं । मह इम्हि इय वुत्तुं, कारइ रासिं सरिसवाणं ॥ १९० ।। निचि(कारि)त्तु तीइ उवरिं, खिविऊणं मूइयं च रासीए । पिहियं च पुप्फपत्तेहिं, तो पुणो नच्चिया एसा ॥ १९१ ॥ नवरं नचंतीए, नवि खिसिओ सरिसवाण सो रासी । न य विद्धा चरणेसुं, तं दटुं रंजिओ रहिओ ॥ १९२ ॥ जंपइ मग्गेसु वरं, जेण पयच्छामि जं ममाइतं । जम्हा उ रंजिओऽहं, दुक्करकरणेण तुह इमिणा ॥ १९३ ।। सा भणइ दुक्करं किं, मए कयं जेण रंजिओऽसि तुम?। सव्वाण दुक्करतरं, विहियं नणु थूलभद्देण ॥१९४।। अंबयलंबीछेए, नच्चेऽवि हु सिक्खिए न दुक्करया । सिक्खं विणा कयं जं, तं दुक्कर थूलभहस्स ॥ १९५ ॥ इह बारस वरिसाई, भुत्ता भोगा मए समं जंग । सो अक्खंडियसीलो, चउमासं मह गिहे रहिओ ॥ १९६ ॥ जो सबरससमग्गं, मणुनभुजं सयावि भुंजतो । मह पासे नवि खुहिओ, स थूलभदो मुणी जयउ ॥ १९७॥ दुद्धं व नउलगंधेण, विणस्सए परमजोगिणोऽवि मणं । रमणीसंसग्गेणं, मुत्तूणं तस्स इक्कस्स ॥ १९८ ॥ आहारो निचंपि हु, सरसो वासो य चित्तसालाए । पासे अहं च एवं, भिज्जइ नणु लोहघडिओऽवि ॥ १९९ ।। अखलियमइट्टकंदप्प-मद्दणे लद्धजयपडायस्स । तिक्कालं चिय इणमो, नमो नमो थूलभद्दस्स ॥ २०० ॥ इय जा 55445 ॥९७।।
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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