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आगंतूणं मुणिणा, उक्कोसाए समप्पियं तं च । चिंतेइ साऽवि विक्खह, किं किं न करेइ कामंधो ? ॥ १६९॥ अह मुणिबोहणहेउं, | कंबलरयणं करंमि गिण्हेउ । पक्खिवइ खालकुंडे सहसा मुत्ताइरसकुहिए ॥ १७० ॥ तं पेक्खिऊण एसो, भणइ मुणी अहह बहुयमुल्लमिमं । कट्टेण मए लद्धं किमित्य खिवित्रं विणासेसि ? ॥ १७१ ॥ जइ एवं तो मुणिवर !, संजमरयणं दुहेण संपत्तं । मा खिवसु इत्थियामुं, इमस्स कुंडस्स सरिसासुं ॥ १७२ ॥ एमारसमुत्तेहिं, असुइरसं जं करेइ सयकालं । जुबईण तम्मि देहे, 16 को रागं कुणइ जाणंतो ? ॥ १७३ ॥ ता निहुओ होऊणं, पालमु नियसंजमं महाभाग ! । इयरजणचिट्ठिएसुं, मा चित्तं दिज्ज सुमिणेऽवि ।। १७४ । इय तीइ वयणमंतेण, झत्ति उत्तारियमि विसविसे । उवलद्धचेयणो सो, भणइ मुणी साहु ते सिक्खा ॥१७५॥ मिच्छामि दुक्कडं ता, इमस्स अइगुरुयमोहललियस्स । भणियाऽसि जं अजुत्तं, मए तुमं तं खमिज्जासि ॥१७६।। उक्कोसाए भणियं, भयवं ! मिच्छामि दुक्कडं तुज्झ । जं कयबंभवयाएऽवि, खेइओ अलियकहणेण ॥१७७॥ नवरं तुह बोहकए, एवमुवाओ इमो मए विहिओ । ता संपइ गुरुपासे, गिण्हमु गंतूण पच्छित्तं ॥ १७८ ॥ इच्छंति भणेऊणं, पच्छतावेण तवियसव्बंगो । विते वासारत्ते, पत्तो स मुणी गुरुसगासे ।। १७९ ॥ तो वंदइ विणएणं, गुरुणो तेहिवि मुणितु तं सव्वं । जावेस उवालद्धो, ता नियदोसं पवज्जेइ ॥ १८० ॥ भणइ य भयवं! मह खमह, मोहदुब्बिलसियं इमं तुम्भे । पसिऊण देह आलोयणंपि एयस्स खलियस्स ।। १८१ ॥ दाउं से पच्छित्तं, तओ गुरू तं पडिक्कमावेइ । अह सोऽवि थूलभदं, खामिय निम्मच्छरो भणइ ॥ १८२ ॥ जं दुक्करदुक्करकारउ ति भणिओऽसि थूलभद ! तुमं । मयणभडवायभंजण :, तं छज्जइ तुज्झ गुरुवयणं ॥१८३॥ चिरपरिचियावि पत्थं-तियावि मिच्छत्तमज्जरसियादि । ज ण य गणिया गणिया, उक्कोसा सो तुमं चेव ॥१८४॥
SC-SCHORAGARH