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________________ प्रकरणम् ॥९५॥ धर्मविधि । धरइ कोऽवि अप्प-त्तियपि ता चिट्ठ पसिऊण ॥ १२१ ॥ अह तत्व ठिो भयवं, कामट्ठाणे बलेग धम्मुन्ध । तीसे गिहंमि गिहिय, सरसाहारं च भुत्तो य ॥१२२॥ तयणंतरमुकमोसा, अइउक्कोसं करितु सिंगारं । तिखकडक्खक्खेवा खोभेउ मुणिवरं पत्ता ॥ १२३ ॥ तप्पुरओ उवविठ्ठा, उक्किट्ठा काऽवि अच्छरव्य इमा। वियरेइ हावभावाइयाओ चउराउ चिट्ठाओ ॥ १२४ ॥ करणाणुभवक्कीलिय-अइउद्दामा ताइँ सुरयाई । पुवकयाइँ पइक्खण-मणुसुमरावेइ सा वेसा ।। १२५ ॥ इय जं जं खोहकए, | करेइ सा तत्व से महामुणिणो । तं तं हवेइ अहलं, वज्जस्स व तह समुल्लिहणं ॥ १२६ ।। पडिवासरंपि एवं, स महप्पा खोहिओऽवि झाणाओ । मेरुव्व निप्पकंपो, जान चलइ तीइ ता भणिओ ॥ १२७॥ ताण गुणग्गहणाणं, ताणुक्कंठाण ताण रमियाण | ताण भणियाण कह पहु रुट ब न देसि पडिवयणं? ॥ १२८ ॥ इच्चाइसरसवयणेहि, तीइ सित्तोऽवि तस्स अहिय- | यरं । दिप्पेइ झाणजलणा, जलेण विज्जूइ पुंजु च ।। १२९ ।। अक्खोहणिज्जमेवं, तं पिक्खिय सरसभोयणपरंप । उवसंता उक्कोसा, पणमिय पुरओ पयंपेइ ॥ १३० ॥ छज्जइ तुह पयमेयं, सलहिज्जइ धीर! तुज्झ चरियपि । हुयवहसिहाइ पडिओवि, जं तुमं नेव दद्धोऽसि ॥१३१ ॥ सवियारकामिणीहि, इयरे भिज्जति न उग तुह सरिसा । किं चलइ मंदरगिरी, तुलंपिव खरसमीरेण ।। १३२ ॥ ता सामि ! खमसु संपइ, पुव्वसिणेहेण भोगलुद्धाए । जं खोहिओऽसि एवं, अओ परं तं गुरू मज्झ ॥ १३३ ।। अह उवसंतं नाउं, तं वेसं कुणइ देसणं स मुणी। अक्खेइ रूवजुब्बगभोगभवाणं अणिच्चत्तं ॥१३४ ॥ तं सोउं सा गिण्हइ, गिहिधम्म धूलिभद्दमुणिपासे । सुहपरिणामवसेग य, अभिग्गहं गिहए एयं ॥ १३५ ॥ जो कोऽवि एइ टू पुरिसो, रायाएसेण तं विमुत्तण । सेसाण सेवणे मह, नियमो पहु! जाव जीवामि ॥१३६॥ अह पुन्ने चउमासे, पासे सिरिअज्ज ROCA49a%C3%
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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