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________________ RSHABASAHASHISHEKAISE मा वेसा, विनायासेसरइगुणविसेसा । कयकामुयजगतोसा, सुपसिद्धा नामओ कोसा ॥८॥ तम्भोगसुहासत्तो, स थूलभद्दो अणंगम यमत्तो ! तीसे गिहम्मि वसिओ, बारस वरिसे विसयरसिओ॥९॥ सिरिओऽवि अंगरक्खो, विहिओ नंदेण रिउविजयदक्खो । रन्नो वीसासाओ, बीयं हिययं व सो जाओ ॥ १० ॥ इत्तो य तत्थ पत्तो, वररुइनामेण माहणो एगो । चउविजावउवयणो, सिठिकरो नवकव्वाणं ॥११॥ सो गंतूग पभाए, नंदनिवं संथुणेइ अत्थाणे । नवविरइयकव्वाणं, अणुदिणमट्टत्तरसरण ॥१२॥ मिच्छत्तियंति काउं, सगडालो नेव तं पसंसेइ । नंदो तुट्ठोऽवि तओ, न तुविदाणं कुणइ तस्स ॥ १३ ॥ तं नाऊण वररुई, दाणअसंपत्तिकारणं तत्थ । आराइ देवीभिव, घरणिं से मंतिणो निचं ॥१४॥ सो तुद्वाए तीए, अन्नदिणे पुच्छिओ कहइ कजं । निवपुरओ तुह भत्ता, मह कन्वाई पसलेउ ॥ १५ ॥ तस्सुवरोहेण तओ, विन्नत्तो तीइ भणइ मंतीवि । मिच्छत्तियस्स वयणं, कहं पसंसामि एयस्स? ॥१६।। अह तीऍ अग्गहेणं, भणिओ तं तह पवज्जए मंती । इत्थीबालामूढाण, अग्गहो जेण अइबलिओ ॥१७॥ तो निवपुरओ कब, नवं पदंतस्स तस्स नरवइणो। मंती अहो सुभासिय-मिमंति वयणं पयंपेइ ॥ १८ ॥ तं सो दीणारसयं, अहियं देइ तस्स नंदनियो । जं जीवावइ राय-प्पहाणवयणपि अणुकूलं ।। १९ ।। अडहियदीणारसए, दिजंते पइदिणपि नरवइणा । विनवइ निवं मंती, निच्चं दिज्जइ किमेयंति ? ।। २० ।। अह भणइ निवो मंति, देमो एयस्स तुह पसंसाए । जइ देमो सयमम्हे, ता किं पुवंपि नो दिन्नं ? ॥ २१ ॥ मंतीवि भणइ सामिय !, एस पसंसा इमस्स नो विहिया । तया परकीयाई, कव्वाइ पसंसियाइ मए ।। २२ ॥ एसो परकम्बाई, सकयाइ करित्तु पढइ अम्ह पुरो । किं सच्चमिमं नो वा ?, इय पुच्छइ नरवई मंतिं ॥ २३ ॥ एएण पढियकन्वाइ, देव ! जाणंति बालियाओवि । दंसिस्सामि पभाए, इय भणइ निवंपि सगडालो ।। २४ ॥ HORSCIECESSAGROCEROCEECRECREE
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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