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________________ DEA5 सुंदरामुवि, दिद्वासु वरंगणासु जं एवं । धाराहयन वसहा, वचंति महिं पलोयंति ॥ ७१ ॥ दरे वयणवियारो इमाण न रमइ मणोऽवि रमणोसु । तिहुपणनईवि मयणो, जिइंदियागं कुगउ किं वा ॥ ७२ ॥ ता एर चिा धना, निम्मलसीलधारिणो तिजए । लग्गो अहंपि संपइ, उत्तममग्गम्मि एयाण ॥ ७३॥ एवं तिगरणमुद्ध, भातो खत्रिय घाइकम्मो सो। भावचरित्तारूढो, पावेई केवलं नाणं ॥ ७४ ॥ नडध्यावि हु नाऊण, निवइणो तं मणोगय भावं। चिंतइ धिरत्यु मह जुव्वणस्स तह रूवललियाण ॥ ७५ ॥ मज्झ कए एगेणं एएणं मोहमोहियमणेग । चत्ताइ जणय जणणी-लच्छीसकुलकमाईणि ॥७६ ॥ बीएण निवइणा पुण, इमिणा तं कि पि वरसियं हियर । जे वुत्तुं पि न तीरइ, विवेयवंतेहि वयणेण ॥७७॥ ता एसो संसारो, पिक्खिज्जतो विवेयदिहोए । सव्वाणत्याण गिई, परिहरियया कुसंगो व्व ॥ ७८॥ इय संवेगमुहारस-सित्ताए भवविरत्तचित्ताए। तोएवि खोणकम्माइ, पापियं केवलं नाणं ॥ ७९ ॥ अह तत्य निवइपासे, आसीणा आसि पट्टदेवीवि । सावि हुतं निवभावं, दिद्विवियाराइणा मुणइ ॥ ८०॥ चिंतइ य महतोऽवि हु, जगजगडणमोहमोहिया होही । मइराउम्मत्ता इव, किच्चाकिच्चं न जाणंति ॥८॥ नो वा कत्थेस निवो, कत्य इयं लेखपुतिया मइला । कत्थ इमो अणुरागो, अम्हाणं सबिहाणेऽवि ॥ १८२ ॥ एवं विडम्बणाफल-मवलोइय एरिस भवसरूवं । पडिबंधो विसएमुं, जो अज्जवि सो महामोहो ॥८३ ॥ इय सुदभावणानल-जालानिकम्मकक्खाए। केवलनाणुप्पत्ती, जाया तीसेवि तकालं ॥ ८४ ॥ निम्मलनियकुललंछन-जणयं तं तारिस जणविरागं । पिक्खेऊण विरचो, चिंता हियए नरिंदोवि ॥८५॥ पदयं मजा पहुत्तं, पम्भहूँ तह विवेयमाहप्पं । लोयविरुदंपि मए, -CCIMoteADHAA%% % ARS
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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